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Friday, July 12, 2019

Swadhyay - Brahmachari Girish


स्वाध्याय

परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी स्वयं एक महान स्वाध्यायी थे, जो माया को देखकर मोहित नहीं, वही सच्चा स्वाध्यायी है। स्वाध्याय ज्ञानी साधुओं के सहयोग से भले-बुरे की समझ विकसित कर देता है।
Brahmachari Girish
स्वाध्याय का अर्थ है स्व अर्थात् आत्मा का अध्ययन। उपनिषद् में कहा है आत्मावारे दृष्टव्यः श्रोतव्यः मन्तव्यः निधिध्यासितव्यः। सत्साहित्य वेद, उपनिषद्, पुराण, गीता आदि आर्षग्रंथ तथा महापुरुषों के जीवन वृतान्तों का अध्ययन तथा मनन करना स्वाध्याय है। किंतु केवल पुस्तकीय अध्ययन ही नहीं इसमें स्व का अध्ययन, मनन, चिंतन, अनुभव भी समाहित है। श्रीमद्भगवद् गीता में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने मोह का त्याग कर आत्मा की अनुभूति करने का प्रयास करने को कहा है। क्योंकि आत्मा अमर है, वह मोह नहीं करती। शरीर, मन इंद्रियों का हमारी आत्मा के साथ क्या संबंध है? इस पर विचार करना ही स्वाध्याय है। स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भगवान से प्रार्थना की है   
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये।
सत्यं वदामि भवान खिलान्तरात्मा।।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे।
कामादि दोष रहितं कुरू मानसं ।।

सबके हृदयवासी प्रभु मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, मेरी अन्य कोई इच्छा नहीं है। मुझे अपने चरणों में निर्भरा भक्तिप्रदान कीजिए और मेरे हृदय को काम आदि दोषों से मुक्त करके अपना स्थायी निवास बना लीजिए। भक्त सदैव ही भगवान से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईर्ष्या जैसी मानसिक अशुद्धियों से छुटकारा पाने के लिये प्रार्थना करते हैं किंतु स्वाध्यायी होने के कारण वह स्व की अनुभूति ही नहीं करते और सांसारिक मोह में फंसे रहते है। मानव जीवन, सुख और दुःख से सदा ग्रस्त रहता है। किंतु यदि यही जीवन जीव, ब्रह्ममय हो जाता है तो उसको सांसारिक सुख-दुःख का स्पर्श भी नहीं रहता। जिसे मोह से मुक्ति चाहिये उसे स्वयं को ईश्वर की ओर ले जाना होगा यह तो सभी कहते हैं ओर हम सभी ने पढ़ा ओर सुना भी है किंतु हमने इसे अपने जीवन में उतारा नहीं हैं। इस पर एक सुन्दर कथा याद आती है जो कि एक सुन्दर उदाहरण है सुनने और समझने का। एक वन में एक ऋषि ध्यानस्थ थे, जब वह ध्यान से उठे तो उन्होने देखा एक बहेलिया (पक्षियों को पकडने वाला) जो पक्षियों को पकडने आया था उसने भूमि पर जाल बिछाया, उस जाल पर कुछ दाने डाले और पास की झाडियों में छुप कर बैठ गया। कुछ पक्षी दाने के लालच में दाना चुगने उतरे और जाल में फंस गये। ऋषि ने समस्त पक्षियों को समझाया कि दाने के लोभ में आकर तुम लोग बहेलिये के जाल में फंस जाते हो। इसलिये याद रखो शिकारी आता है, जाल फैलाता है, दाने का लोभ दिलाता है, किंतु जाल में नहीं फंसना चाहिये। यह बात सभी पक्षियों ने कंठस्त कर ली और ऋषि पुनः ध्यानस्त हो गये। कुछ दिनों बाद जब वह ध्यान से लौटे तो देखा एक बहेलिया अपनी पीठ पर जाल रखकर जा रहा है। उस जाल में अनेक पक्षी थे और सभी गा रहें थे शिकारी आता है, जाल फैलाता है, जाल में फंसना नहीं चाहिये। ठीक इसी कथा के अनुसार हम भी आसक्त हो जाते हैं। माया को देखकर भी मोहित हो वही सच्चा स्वाध्यायी है, क्योंकि वह ज्ञान चक्षुओं के सदुपयोग से अपने अच्छे और बुरे की सही समझ स्वयं में विकसित कर लेता है, वह सत्साहित्य, वेद, उपनिषद तथा महापुरुषों के जीवन वृतान्तों के सार को आत्मसात कर लेता है और उसी अनुसार अपना जीवन आनन्दित होकर व्यतीत करता है। स्वाध्याय भी उन्हीं लक्षणों में से एक हैं, जिन 30 लक्षणों के बारे में श्रीमद्भागवत् में उल्लेख किया गया है। यह वह मार्ग हैं, जो आत्मा को परमात्मा से मिलाने हेतु आतुर हैं, आवश्यकता तो मात्र उनका पालन करने की है। उन्हें आत्मसात करने की है। संसार में जितने भी ऋषि, महर्षि, संत-महात्मा, महापुरुष वैज्ञानिक हुए है वे सभी स्वाध्यायशील थे, सच्चे अर्थों में स्वाध्यायी वही जिसने मानवीय जीवन की समस्याओं को दूर करने के लिये मानव धर्म का मार्ग प्रशस्त किया हो और स्वयं भी उसका पालन किया हो। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी भी एक महान स्वाध्यायी थे। मानव जाति के कल्याण के लिये महर्षि जी नेभावातीत ध्यान योग शैलीजैसा सरल सुगम मार्ग प्रतिपादित किया। जिससे मानव समाज की चिन्ताएं दूर हों, हमारी शंका-कुशंकाओं का समाधान हो, मन में सद्भाव और शुभ संकल्पों का उदय हो और जीवन मात्र आनंदमय हो।

ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश 


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