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Friday, July 5, 2019

Man Changa To Kathauti Men Ganga - Brahmachari Girish


मन चंगा तो कठोती में गंगा
Brahmchari Girish
श्रीमद्भागवत में भगवान को प्रसन्न करने के जो 30 लक्षण बताए गये हैं। अब हमारा विषय है- ‘शौचजो कि पवित्रता का एक पर्यायवाची है और ईश्वर उपासना का मुख्य तत्व है। जिस प्रकार एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ आत्मा का वास होता है, ठीक उसी प्रकार एक स्वच्छ तन-मन, एक स्वच्छ विचार को जन्म देता है। महर्षि ने सदैव ‘‘मनसावाचाकर्मणाअर्थात् तन, मन और वचन की शुद्धि को जीवन में सर्वोपरि बताया है। एक प्राचीन कथा भी इस बात को समझने में हमारी सहायता करती है। यह कथा दो समकालीन संत तुलसीदासजी एवं रविदासजी से जुड़ी है। तुलसीदास जी उच्चवर्ग से थे तो उनकी मान-प्रतिष्ठा अधिक थी वहीं एक विशेष वर्ग में संत रविदास जी भी पूज्यनीय थे। जब एक भक्त के रूप में संत रविदासजी की भक्ति की प्रसिद्धि तुलसीदास जी तक पहुंची तो वह संत रविदासजी को मिलने उनके गांव पहुंचे। तुलसीदासजी अपने साथ अपने सहायक एवं शिष्यबुद्धूको भी ले गए। जब तुलसीदासजी एवंबुद्धुसंत रविदास के निकट पहुंचे तब संत रविदास मृत जानवर को उसके बाह्य आवरण अर्थात् त्वचा से पृथक कर रहे थे और उनके हाथ रक्त से सने हुए थे। यह दृष्य देख तुलसीदास जी अचंभित रह गये कि ऐसा कृत्य करने वाला व्यक्ति ईश्वर का कृपापात्र कैसे हो सकता है? साथ ही उनके हृदय में रविदास के प्रति घृणित भाव उद्घृत हो गये। उधर अपने कार्य में मग्न संत रविदास जी की दृष्टि जब तुलसीदास जी पर पड़ी तो वह भावविभोर हो गये और अधीर भाव से उनके चरणों को छुने दौड़ पड़े। भावुकता में संत रविदास को यह भी भान रहा कि उनके हाथ रक्त से सने हुए हैं। यह देख व्यथित होकर तुलसीदास जी पीछे हट गये और जब संत रविदास जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा - ‘रक्तरंजित हाथों से आप मुझे नहीं छू सकते। सर्वप्रथम आप गंगा स्नान कर आयें क्योंकि आप मृत जानवर का आवरण उतार रहे थे और गंगा स्नान के पश्चात ही आप मुझे छूने के अधिकारी होंगे।तब तुलसीदास जी के दर्शनमात्र से स्वयं को अभीभूत मान रहे रविदास के मुंह बरबस निकलामन चंगा तो कठौती में गंगा संत रविदास का इतना कहना ही था कि वहां रखी कठौती में से गंगाजी की धारा फूट पड़ी और रविदासजी ने उसमें स्नान कर तुलसीदास जी से आशीर्वाद लिया। वहां से लौटते समयबुद्धूको तुलसीदास की धोती पर पशु के रक्त के कुछ धब्बे दिखाई दिये और उसने धोती को गंगाघाट पर धोने की इच्छा जताई, फलस्वरूप दोनों ने घर जाकर गंगाघाट की ओर प्रस्थान किया। वस्त्रों को धोते समय जब रक्त के धब्बे अनेक प्रयास करने पर भी नहीं छूटे तो अज्ञानता गुरूभक्तिवश बुद्धू ने रक्त का स्पर्श किया परंतु उसके भाव में भी गुरूभक्ति जिसने उसकी आत्मा को ऐसी पवित्रता प्रदान की कि उसी क्षण भगवान की कृपा से गुरूभक्त बुद्धू त्रिकालदर्शी हो गया। भारतीय वैदिक परंपरा में कथाओं का अपना एक विशेष स्थान है। कथा की विद्या गूढ़ रहस्यों को भी सरल-सुलभ और मनोरंजक बनाते हुए विभिन्न रसों से सराबोर मानव मे बुद्धिस्तर को कथानक के अनुरूप ढाल देती है कथा का सार मानव मस्तिष्क को प्रखरता प्रदान करता है। कथाएं मानवीय जीवन में वैदिक सांस्कृतिक मूल्यों की सार्थकता को समझने का माध्यम भी हैं। महर्षि सदैव ही निष्छल पवित्रता को प्रतिपादित करते थे इसलिए भारतीय वैदिक परंपरा केध्यानको सरल और परष्कित करके संपूर्ण मानव जाति को समर्पित किया जिससे सपूर्ण मानव जाति और संपूर्ण प्रकृति एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी होकर एक दूसरे के अनुगामी हों।

ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश 

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