संतों और श्रेष्ठजनों के विचारों और सुझावों के क्रियान्वयन की महती आवश्यकता
ब्रह्मचारी
गिरीश
जी
ने
कहा
है
कि
‘‘भारतभर
में
शिक्षा,
ज्ञान,
वेद
सम्बन्धित
अनेकों
विचार
संगोष्ठियों,
सभाओं
आदि
का
आयोजन
होता
है।
सभी
आयोजक
बधाई
और
धन्यवाद
के
पात्र
हैं।
देश
विदेश
से
पधारे
अनेक
विद्वान,
वैज्ञानिक,
शिक्षाविद्,
समाजसेवी,
साधु-संत,
राजनेताओं
की
उपस्थिति
और
उनके
द्वारा
व्यक्त
विचारों
में
कुछ
अत्यन्त
प्रायोगिक
और
उपयोगी
सुझाव
होते
हैं
किन्तु
उन
जनोपयोगी,
जीवनोपयोगी
विचारों
और
सुझावों
को
लागू
करने
की
दिशा
में
कोई
कार्य
नहीं
होता।"
हाल
ही
में
आयोजित
एक
सभा
में
उन्होंने
एक
वक्ता
का
संदर्भ
लेते
हुए
कहा
कि
‘‘यह
सत्य
है
कि
प्रत्येक
व्यक्ति
के
अपने-अपने
विचार
होते
हैं।
सद्विचारों
के
कारण
व्यक्ति
एक
अच्छा
व्यक्ति
और
कुविचारों
के
कारण
एक
दूसरा
व्यक्ति
बुरा
व्यक्ति
बनता
है।" उन्होंने
आश्चर्य
व्यक्त
किया
कि
वर्तमान
में
कोई
भी
विद्वान
विचारों
के
स्रोत-भावातीत
चेतना
को
जगाने
की
बात
नहीं
करते।
चेतना
ही
जीवन
का
आधार
है,
समस्त
विचारों
की
उत्पत्ति-अच्छे
या
बुरे
विचार
चेतना
के
स्तर-चेतना
की
शुद्धता
पर
ही
निर्भर
हैं।
यदि
बाल्यकाल
से
अष्टांग
योग
साधन
और
भावातीत
ध्यान
के
माध्यम
से
चेतना
को
जागृत
कर
लिया
जाये,
शुद्ध
कर
लिया
जाये,
पवित्र
कर
लें
तो
उसकी
प्रत्यक्ष
अभिव्यक्ति-विचार,
वाणी,
व्यवहार
और
कर्म
सभी
केवल
सात्विक,
शुद्ध,
सकारात्मक
होंगे।
आज
सबसे
बड़ी
आवश्यकता
है
अनुभवी
श्रेष्ठजनों,
संतों
के
सुझावों
को
जीवन
संचालन
में
सम्मिलित
करना।
यदि
हम
जीवनपरक
सिद्धाँतों
और
तकनीकों
को
जीवन
दैनन्दिनी
में
सम्मिलित
कर
लें
तो
प्रत्येक
व्यक्ति
का
जीवन
धन्य
होगा,
दिव्य
होगा।"
ब्रह्मचारी
श्री
गिरीश
ने
एक
प्रश्न
के
उत्तर
में
कहा
कि
‘‘गाँव-गाँव
में
टायलेट
बनाकर
उसका
उपयोग
भूसा-चारा
रखने
के
लिये
करने
का
उदाहरण
इस
तथ्य
का
प्रत्यक्ष
प्रमाण
है
कि
केवल
भौतिक
सुविधायें
निर्मित
कर
देने
से
समाज
या
वातावरण
में
स्वच्छता
नहीं
आ
जायेगी।
आध्यात्मिक
विकास,
चेतना
जगाना
प्राथमिक
आवश्यकता
है।
एक
किसी
विशेष
कार्य
के
प्रति
चेतना
जगाना
आधा-अधूरा
कार्य
है।
समग्रता
में
चेतना
की
जागृति
और
विकास
करना
पड़ेगा,
जिससे
जीवन
के
समस्त
क्षेत्र
में
सफलता
की
प्राप्ति
हो
जाये।
एकहि
साधे
सब
सधे-आत्मा
को
जगालो,
बस
किसी
को
कुछ
नहीं
करना
पड़ेगा।
उपनिषद्
में
कहा
है
आत्मावारेदृष्टव्यःश्रोतव्यः मन्तव्यःनिध्ध्यिासितव्यः।
यह
बहुत
सरल
है।
भावातीत
ध्यान
के
नियमित
अभ्यास
से
चेतना
की
पूर्ण
जागृति
सम्भव
है
और
तब
जीवन
का
प्रत्येक
क्षेत्र
सकारात्मक
होगा,
जीवन
सफल
होगा।
मध्यप्रदेश
प्रान्त
सर्वोत्कृष्ट
प्रान्त
बने
यह
पूर्णतः
सम्भव
है।
प्रदेश
की
सामूहिक
चेतना
से
यह
पता
लगेगा
कि
इस
उपलब्धि
में
कितना
समय
लगेगा।
सरकार
की
इसमें
रूचि
से
और
दृढ़
निश्चय
होने
से
ही
यह
सम्भव
होगा।"
उन्होंने
कहा
महर्षि
संस्थान
के
पास
ज्ञान
है,
तकनीक
है
और
अपने
स्तर
पर
हम
चेतना
जगाने
का
कार्य
कर
भी
रहे
हैं,
यदि
भारत
की
केन्द्र
एवं
राज्यों
की
सरकारें
थोड़ा
सहयोग
करें
तो
शीघ्र
परिणाम
आयेगा।
ब्रह्मचारी
गिरीश
जी
ने
बताया
कि
परमपूज्य
महर्षि
महेश
योगी
जी
ने
वैदिक
ज्ञान
विज्ञान
के
आधार
पर
जीवन
जीने
की
कला
सहज
रूप
में
उपलब्ध
करा
दी
है।
सभी
को
इसका
लाभ
लेना
चाहिये।
विजय रत्न खरे
निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क
महर्षि शिक्षा संस्थान
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