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Friday, June 28, 2019

Lakshya Shrestha Jagat - By Brahmachari Girish


लक्ष्यश्रेष्ठ जगत
निष्कपट भाव से क्षणिक आत्मविष्लेषण करने से ही मन की करनी पकड़ में जाती है। हम समझ सकते हैं कि हम कहां पर खरे हैं और कहां पर खोटे, क्योंकि हम स्वयं के साथ कभी छल नहीं कर सकते। यदि हम क्षणिक स्थिर होकर विचार करें तो हमारा मन हमें स्पष्ट बता देगा कि हम सकारात्मकता की ओर अग्रसर हैं या नहीं। जिस प्रकार चक्की में गेहूं को पीसते समय चक्की चलाने वाला बार-बार गेहूं के आटे को स्पर्श कर देखता है कि यह भोजन के उपयुक्त हुआ है कि नहीं। अतः जब भी हम भटकाव का अनुभव करें तो ऐसा सोचें कि हम जो साधना कर रहे हैं उससे हमारी सकारात्मकता बढ़ती जा रही है या नहीं, क्योंकि लक्षणों को देखकर हमें स्वयं को जानना आवश्यक है कि हमारी प्रगति हो भी रही है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी मन रूपी नाव बंधी हो मोहमाया में और हम उसको निरंतर खेते जा रहे हैं, परिणामस्वरूप परिश्रम तो कर रहे हैं किंतु चित्त की उन्नति और प्रगति का अभाव है। अतः चित्त को स्थिर करने हेतु हमारे आध्यात्मिक स्तर को शुद्ध करना होगा और इस कार्य का सरलतम एवं प्रभावी योग है- ‘‘भावातीत ध्यानआध्यात्मिक रहस्यवाद को दूर कर महर्षि जी ने भावातीत ध्यान को मन के स्तर पर सीमित कर दिया और उसे मानवीय चेतना के विस्तार की एक वैकल्पिक पद्धति के रूप में विश्व के सम्मुख प्रस्तुत किया। महर्षि जी ने बताया कि ‘‘मनोविस्तार के लिये प्रयोग किये जाने वाले रासायनिक दृव्य अन्ततः असीम चेतना और अनन्त शक्तियों के आदि स्त्रोत के द्वार खोलने में बाधक सिद्ध होंगे।इस लक्ष्य की प्राप्ति के लियेभावातीत-ध्यान पद्धतिकी निरंतर साधना आवश्यक है। महर्षि जी समस्त आधुनिक विश्व में रासायनिक दृव्यों के बढ़ते उपभोग से चिन्तत थे और समस्त मानवजाति को वह नितांत यथार्थवादी सभ्यता के तनावों और दबावों से भी सुरक्षित रखना चाहते थे।भावातीत ध्यानवह पद्धति है जिसके अभ्यास से मन एवं तन के तनावों पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
वैज्ञानिकों ने पाया कि भावातीत-ध्यान मनुष्य के मन को पूर्णतः स्थिर करता है, मनुष्य की ग्रहण शक्ति बढ़ाता है और ध्यान केन्द्रित करने की चेतना का विस्तार करता है। अर्थात् भावातीत ध्यान से बुद्धि, ज्ञान समस्त योग्यताओं में वृद्धि होती है। महर्षि जी कहते थे कि ‘‘प्रत्येक के भीतर सक्रियता की अनन्त क्षमता होती है परंतु उस विशाल भंडार को आधुनिक शिक्षा प्रणालियां सक्रिय और सजग नहीं बना पातीं। मनुष्य की प्रतिभा उसकी चेतना के मौन अर्थात् मन की उस सूक्ष्म अवस्था में छिपी रहती है, जहाँ से प्रत्येक विचार का उद्गम होता है। विश्व में जितनी भी खोजें हुई हैं वे चेतना के इसी गहरे स्तर से उदय हुई हैं। सफल व्यक्तियों की सफलता का गुप्त साधन यही चेतना है। यह वह महासागर है जिसके ज्ञान की समस्त धाराएं मिली होती हैं और चेतना के इस अत्यंत कोमल स्वरूप से सम्पूर्ण सृष्टि का उदय होता है।
महर्षि ने पूर्वी विश्व के प्राचीन ज्ञान और पश्चिमी विश्व की वैज्ञानिक प्रगति को एक सूत्र में बाँधा। महर्षि जी की चिंता का मुख्य विषय मनुष्य की चेतना को उन समस्त बंधनों से मुक्त कराना था जिनमें वे जकड़ी हुई हैं क्योंकि यह मुक्त चेतना ही मनुष्य के जीवन का विस्तार कर सकती है। महर्षि जी का लक्ष्य एक श्रेष्ठ जगत् का निर्माण करना था।
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश 

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