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Friday, March 16, 2018

Shree Bhagwat Katha is infinite



श्रीमद्भागवत कथा अनंत है- ब्रह्मचारी गिरीश
भोपाल (महामीडिया) वृंदावन धाम के प्रसिद्ध कथा वाचक आचार्य बद्रीश जी महाराज द्वारा महर्षि महेश योगी संस्थान में चल रही 13 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन आज बड़े ही धार्मिक उल्लास के बीच पूर्ण हुआ। इस अवसर पर ब्रह्मचारी गिरीश जी, महर्षि संस्थान के सभी उच्च अधिकारी, भक्तगण और बड़ी संख्या में महिला श्रद्धालु उपस्थित थीं
Brahmachri Girish Ji
समापन के अवसर पर ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आचार्य बद्रीश महाराज और उनकी मण्डली को बधाई और धन्यवाद दिया कि उन्होंने 13 दिनों तक अपनी श्रीमद्भागवत कथा को अपनी वाणी से सभी लोगों को आनंद ज्ञान और धार्मिक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि महाराज जी ने भागवत कथा का जो महत्व बताया उसका लाभ मिला और आगे मिलता रहेगा। 
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने कहा कि भक्ति दो तरह की होती है। पहली चल भक्ति और दूसरी अचल भक्ति। इसलिए हम सभी को यह प्रयास करना है कि हम इस भगवत भक्ति को अचल भक्ति बनाये रखें अर्थात् भक्ति की निंरतरता बनाये रखनी है। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन मंदिर नहीं जाता लेकिन उसके अपने मन के मंदिर में यदि चेतना जागृत है, पूर्णता जागृत है तो यह क्रम जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि कथा का आज विश्राम हो रहा है उसकी पूर्णता नहीं क्योंकि वह अनंत है, उसका कोई सिरा नहीं है। 
इसके पूर्व आज सर्वप्रथम महर्षि विद्या मंदिर समूह के अध्यक्ष ब्रह्मचारी गिरीश जी, महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भुवनेश शर्मा ने गुरू पूजन करके श्रीमद्भागवत कथा प्रारंभ कराई। श्री बद्रीश जी महाराज ने कहा कि आज श्रीमद्भागवत कथा का तेरहवां दिवस भी है और विश्राम का भी दिन है। तेरह अंकों की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने कहा कि इस अद्भुत सृष्टि में भोले बाबा को त्रयोदशी का व्रत प्रिय है। ठीक उसी तरह मनुष्य के अंतिम संस्कार को भी तेरहवीं कहा जाता है। हमारे ग्रंथों में कहा है कि तेरह तरह के लोगों से कभी बैर नहीं करना चाहिए। यह श्रीमद्भागवत कथा जो हमें प्रभु ने तेरह दिनों तक की वह आज हमें प्राप्त हो गई अर्थात् तेरा हो गया। भगवान श्री राम के भोले बाबा सेवक, स्वामी और सखा हैं। यदि कोई इन तीनों में से किसी से भी कोई भेद रखेगा तो उसे भक्ति की प्राप्ति नहीं होगी। सेतबंधु रामेश्वरम की स्थापना के समय शिवजी का नाम रखा रामेश्वर और स्वयं प्रभु श्री राम ने इसका अर्थ बताया राम के ईश्वर। लेकिन कुछ लोगों ने इसका भावार्थ बदल कर दिया राम ही हैं जिनके ईश्वर। भगवान राम के प्रति भोले बाबा का एवं भोले बाबा के प्रति श्री राम का अनन्य मोह है। भगवान विष्णु सतोगुण के देवता हैं अर्थात कपूर जैसे गौरे। धर्म की गति बड़ी सूक्ष्म है बगैर धर्म को भली भांति जाने बिना इस मार्ग पर चलना धर्मान्धता है। जैसे कोई दिनभर माला जपता है तो पहले यह समझना जरूरी है कि इसका उद्देश्य क्या है? इसलिए धर्म के बारे में बहुत अधिक सजग रहने की आवश्यकता है। जो अधर्म के लक्षणों से बचकर चलता है वह सदैव धर्म और भगवत भक्ति को प्राप्त कर लेता है। हमें किसी दूसरे के धर्म को छोटा नहीं कहना है बल्कि स्वामी विवेकानंद के बताये मार्ग अनुसार अपनी लकीर बड़ी करनी है। महर्षि महेश योगी जी ने जिस उद्देश्य को लेकर इस वट वृक्ष को पुष्पित, पल्लिवत किया था आज उसी वट वृक्ष में कोई भी पंडित दो वर्ष का सघन प्रशिक्षण प्राप्त कर अपना सुरक्षित एवं सम्मानपूर्वक जीविकोपार्जन करने लायक बन जाता है इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है। 

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