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Friday, March 2, 2018

Satyamev Jayate Very Important Principle



सत्यमेवजयते बहुत महत्वपूर्ण सिद्धाँत

Dr. Girish Chandra Varma Chairman Maharishi Vidya Mandir Schools
Brahmachari Dr Girish Varma
परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी के प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आज कहा कि ‘‘सत्यमेवजयते" एक बहुत बड़ा, महत्वपूर्ण और मूल्यवान सिद्धाँत है। जो मनुष्य अपनी दिनचर्या, जीवनचर्या सत्य पर आधारित रखेंगे उन्हें सदा विजय की प्राप्ति होगी, पराजय कभी नहीं देखनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि वैदिक वांगमय सत्य सम्बन्धी गाथाओं और उनके शुभफलों से   भरा पड़ा है।
‘‘इस काल में हमने महर्षि महेश योगी जी को सत्य के पर्याय रूप में देखा। 50 वर्षों तक शताधिक देशों में अनेकानेक बार भ्रमण करके समस्त धर्मो, आस्था, विश्वास, परम्परा, जीवन शैली के नागरिकों को भारतीय वेद विज्ञान का जीवनपरक ज्ञान देना, भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम, योगिक उड़ान, ज्योतिष, गंधर्ववेद, स्वास्थ्य, वास्तुविज्ञान, कृषि, पर्यावरण, पुनर्वास आदि विषयों का सैद्धाँतिक ज्ञान और प्रायोगिक तकनीक देना किसी एक व्यक्ति के लिये असम्भव है। जब महर्षि जी विश्व को दुःख से, संघर्ष से मुक्त करने निकले थे, तब आज की तरह ईमेल, मोबाइल, इंटरनेट, प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, संचार, शोसल नेटवर्क इतना सुलभ नहीं था। सारा कार्य चिट्ठी-पत्री से होता था। गुरुदेव तत्कालीन ज्योतिष्पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी ने हिमालय बद्रिकाश्रम की गद्दी 165 वर्ष तक रिक्त रहने के पश्चात् 1941 में सम्हाली थी और अपने, गहरे पूर्ण वैदिक ज्ञान, तप, परिश्रम से पूरे भारतवर्ष विशेषरूप से उत्तर भारत में अध्यात्म और धर्म की पताका घर-घर में फहरा दी। बड़ी संख्या में विशाल यज्ञों का आयोजन किया। गुरुदेव के कार्यों के आधार में उनका ज्ञान, तप और प्रमुखतः सत्व था।
‘‘पूज्य महर्षि जी ने 13 वर्ष श्रीगुरुदेव के श्रीचरणों की सेवा करते हुए साधना की और ज्ञान सत्य के मार्ग को अपनाकर सारे विश्व में जो भारतीय ज्ञान-विज्ञान का प्रचार-प्रसार, अध्ययन-अध्यापन और कार्य योजनाओं का क्रियान्वयन किया वह अद्वितीय है, भूतो भविष्यति।
ब्रह्मचारी गिरीश ने कुछ निराशा जताते हुए कहा कि ‘‘इस कलिकाल में मानव जीवन से सत्व का ह्रास होने के कारण तनाव, परेशानियाँ, दुःख, संघर्ष, आतंक, चिन्तायें, रोग-बीमारी आदि तेजी से मानव जीवन को जकड़ रही हैं। हम किसी की आलोचना या निन्दा नहीं करना चाहते किन्तु सत्य तो यह है कि आज अध्यात्म या धर्म की जाग्रति के प्रचार के स्थान पर व्यक्ति केन्द्रित प्रचार अधिक हो रहा है। यदि समस्त धर्म गुरु अपने-अपने शिष्यों को नित्य साधना के क्रम से जोड़ दें तो भारतवर्ष की सामूहिक चेतना में सतोगुण की अभूतपूर्व अभिवृद्धि होगी और सत्यमेवजयते पुनः स्थापित होने लगेगा।"
गिरीश जी ने यह भी कहा कि ‘‘आज धर्मगुरुओं के उत्तराधिकार को लेकर मठों, अखाड़ों, पीठों, संस्थाओं में वैचारिक, वैधानिक मतभेद के साथ-साथ मारपीट और साधु संतों के बीच खून-खराबे तक के समाचर पढ़ने और सुनने को मिलते हैं। हमें यह समझ नहीं आता कि सन्यास ले लेने वाले किसी पद या सम्पत्ति या गद्दी के या प्रतिष्ठा के लिये क्यों लड़ते हैं? यह अपनी वैदिक परम्परा के विरुद्ध है। यह प्रमाणित करता है कि उनका सन्यास वास्तविक नहीं है। भगवा वस्त्र धारण कर, साधु वेष बना लेना केवल दिखावा है। सन्यासी तो मन से होना चाहिये। आत्मचेतना से सन्यासी हों और यह सब व्यक्ति के स्वयं की शुद्ध सात्विक चेतना पर निर्भर होता है। साधना की कमी सतोगुण में कमी रखती है, रजोगुण और तमोगुण हावी हो जाते हैं तब सन्यासी अपने कर्तव्य से विमुख होकर साधारण मनुष्य की तरह आचरण करने लगते हैं, धर्म गुरु का केवल नाम रह जाता है और सत्व दूर रह जाता है। संत कबीरदासजी ने ठीक ही कहा है मन रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा।"
ब्रह्मचारी गिरीश ने कहा कि वे सन्तों, साधुओं, सन्यासियों और धर्म गुरुओं के श्रीचरणों में दण्डवत प्रणाम करते हैं और उनसे निवेदन करते हैं कि वे अपने शिष्यों, भक्तों को सत्यमेव जयते की विद्या प्रदान कर भारतीय और विश्व परिवार के नागरिकों का जीवन धन्य करें और सत्य पर आधारित अजेयता का उपहार आशीर्वाद में दें। भारत और विश्व सदा भारतीय साधकों और धर्म गुरुओं का ऋणी और कृतज्ञ रहेगा।
विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क
महर्षि शिक्षा संस्थान

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