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Tuesday, February 13, 2018

प्रत्येक मनुष्य ब्रह्म है, दलित कोई नहीं


Brahmachari Dr Girish Varma Ji
“जो मानव शरीर लेकर जन्मा है वो ब्रह्म है, दलित कोई नहीं है, निहित स्वार्थों के चलते ब्रह्म को दलित बताया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि चारों वर्ण उन्हीं की सृष्टि हैं जो गुण और कार्यों के अनुसार हैं। किसी भी मनुष्य या जाति को दलित कहना उचित नहीं है बल्कि इसे अपराध घोषित किया जाना चाहिये। प्रत्येक मनुष्य के जीवन का आधार उसकी चेतना है, उसकी आत्मा है। सर्वोच्च और श्रेष्ठतम कार्यों के आधार पर व्यक्ति ऊचाँ उठता है और किन्हीं निम्न श्रेणी के कार्यों के कारण वह एक बुरा या छोटा व्यक्ति कहलाता है। चेतना की उच्च अवस्था प्राप्त व्यक्ति श्रेष्ठ कहलाता है और बाकी उसका अनुसरण करते हैं।"

“राजनीतिक कारणों और स्वार्थ ने अच्छे खासे मनुष्य को दलित की संज्ञा तो दे दी है किन्तु उनके उत्थान के कोई उपाय नहीं किये हैं। यदि किये भी हैं तो कार्यक्रमों का पूर्ण लाभ उन तक नहीं पहुँच पा रहा है। सरकारें भी यह स्वीकार करती हैं। वास्तव में किसी को दलित कहना पाप-कर्म माना जाना चाहिए। महर्षि जी ने सारे विश्व के सभी धर्मों, विश्वास, आस्था, संप्रदाय, जाति और आयु के नागरिकों को भावातीत ध्यान, उसकी उन्नत तकनीक सिखाकर और वेद विज्ञान के ज्ञान द्वारा चेतना की उच्चावस्था का अनुभव कराया। जाग्रत, स्वप्न, सुशुप्ति, भावातीत, तुरीयातीत, भगवत् और ब्राह्मीय चेतना का सैद्धांतिक ज्ञान व प्रायोगिक तकनीक देकर उन्हें अहं ब्रह्मास्मि, आत्मैवेदमसर्वं, सर्वंखलुइदम ब्रह्म का अनुभव कराया। संतों की यही महानता और इनका यही आशीर्वाद तो प्रत्येक व्यक्ति को ब्रह्म बनाता है और साधारण स्वार्थी मनुष्य ब्रह्म को दलित बना देते हैं।’’ हाल ही में भारत के श्रेष्ठतम सन्तों की उपस्थिति में ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यह विचार रखे।

ब्रह्मचारी जी ने संतों से निवेदन किया कि वे ब्रह्म को दलित बनाए जाने की कुत्सित चालों को अपने ज्ञान और आशीर्वाद से नाकाम कर दें, प्रत्येक मनुष्य को अहं ब्रह्मास्मि का बोध करा दें। उन्होंने भारतीय नागरिकों से अनुरोध किया कि भविष्य में कोई व्यक्ति दलित कहलाकर अपने को छोटा, दुर्बल, निर्धन, दीन-हीन ना समझे। समाज में सब ब्रह्मत्व को प्राप्त करें, सब आनन्दमय जीवन जियें, सब जीवन को पूर्ण बनायें, स्वस्थ्य रहें, सम्पन्न हों, ज्ञानी हों, प्रबुद्ध हों, अजेय हों। सर्वेभवन्तु सुखिनः केवल सिद्धाँत नहीं है, केवल एक उक्ति नहीं है, यह वास्तविकता है, यह पूर्णरूपेण सम्भव है। भारतीय सन्तों की तपस्या पहले भारत और फिर भारत के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व के जनमानस के लिये कल्याणकारी सिद्ध होगी।

विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क 
महर्षि शिक्षा संस्थान

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