Search This Blog

Wednesday, February 7, 2018

प्राकृतिक आपदाओं का कारण - प्रकृति के नियमों का उल्लंघन


Brahmachari Dr Girish Chandra Varma Ji

"प्रकृति के नियमों का पालन होकर उनका सामूहिक उल्लंघन ही प्राकृतिक असंतुलन और आपदाओं का कारण है। विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय वर्तमान की शिक्षा में प्रकृति के नियमों का कोई पाठ और प्रयोग नहीं है। व्यक्ति अज्ञान और अनेकानेक कामनाओं की पूर्ति होने के कारण तनाव और चिंताग्रस्त होता है। व्यक्तिगत तनाव सामाजिक स्तर पर एक बड़े तनाव का गठन करते हैं और ये सामूहिक तनाव बड़े स्तर पर प्राकृतिक आपदा लाते हैं। इसमें बाढ़, सूखा, भूकम्प, बीमारियाँ, दुर्घटनायें आदि सम्मिलित हैं। एक व्यक्ति द्वारा अपराध कारित किये जाने पर राष्ट्रीय विधान उसे दण्ड देते हैं। कुछ व्यक्तियों द्वारा मिलकर अपराध किये जाने पर अधिक गंभीर दण्ड का प्रावधान है। इसी तरह प्रकृति उसके नियमों के सामूहिक उल्लंघन करने पर आपदाओं के रूप में सामूहिक दण्ड देती है।" यह विचार ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी के परम प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने व्यक्त किये।
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आगे कहा कि "आज की शिक्षा विदेशों से ली गई शिक्षा प्रणाली है। इसमें कहीं भी मानवीयता का, भारतीय शाश्वत वैदिक ज्ञान - विज्ञान का समावेश अब तक नहीं किया गया है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात अनेक सरकारों में विदेशों से शिक्षा प्राप्त राजनेता थे जिन्हें भारतीय ज्ञान और शिक्षा का अनुभव नहीं था। अतः जो शिक्षा उन्होंने ली थी उसी को श्रेष्ठ समझकर स्वतंत्र भारत की शिक्षा प्रणाली बना दी। स्वतंत्र भारत में शिक्षा की नींव ही गलत पड़ गई जिसका दुष्परिणाम भारत आज तक भोग रहा है।"
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने प्रश्न पूछा कि "हजारों लाखों वर्ष पूर्व ज्ञान देने वाले ऋषि, महर्षि क्या पी.एचडी. या एम.बी.. थे? जो ज्ञान उस समय दिया गया वह आज भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उतना ही प्रासांगिक है जितना तब था। उसी वैदिक ज्ञान के कारण भारत प्रतिभारत, जगतगुरु भारत था। हम आज भी अपने राष्ट्र को सर्वोच्च शक्तिशाली, ज्ञानवान बना सकते हैं बशर्ते हम शिक्षा के सभी विषयों और स्तरों पर भारतीय वैदिक ज्ञान-विज्ञान को सम्मिलित कर दें।"
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यह भी पूछा कि "आज की आधुनिक शिक्षा प्राप्त करके कोई ऋषि या ब्रह्मर्षि क्यों नहीं होते? सभी शिक्षाविद् इस तर्क से सहमत हैं किन्तु दुर्भाग्यवश कोई इस दिशा में आगे नहीं बढ़ता। सब किसी और के आगे बढ़ने की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं। सभी को आगे आना होगा और भारतीय ज्ञान-विज्ञान परक शिक्षा को वर्तमान शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित करने के लिये आवाज उठानी होगी।"
उल्लेखनीय है कि परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी ने सारे विश्व में हजारों शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की जिनमें चेतना पर आधारित शिक्षा, चेतना विज्ञान और वेद विज्ञान की शिक्षा प्रदान की जाती है। भारत वर्ष में महर्षि जी ने महर्षि विद्या मन्दिर विद्यालयों की श्रृंखला, इन्स्टीट्यूट्स, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों की स्थापना की है।

विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क, महर्षि शिक्षा संस्थान 


No comments:

Post a Comment