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Wednesday, February 28, 2018

The process of Yagya is absolutely pure

यज्ञ की प्रक्रिया अत्यन्त शुद्ध और विधान निश्चित हैं
 
यज्ञ विधान में अशुद्धि और प्रक्रिया में त्रुटियाँ विनाशकारक हैं

Brahmachari Shri Girish Ji
गुरूदेव ब्रह्मानन्द सरस्वती आश्रम, भोपाल में वैदिक यज्ञाचार्यों से चर्चा के दौरान परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी के प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यज्ञों में शुद्धता पर बहुत जोर डाला। उन्होंने बताया कि ‘‘वैदिक ग्रन्थों में वर्णित वैदिक विधानों और प्रक्रियाओं के अनुसार ही यज्ञों का संपादन किया जाना चाहिए। विधान के उल्लंघन और जरा सी असावधानी, अशुद्धता या त्रुटि यजमान और यज्ञाचार्य के लिये विनाशकारी सिद्ध हो सकती है।’’
उन्होंने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि ‘‘हमने अनेक यज्ञों में स्थापित यज्ञ मण्डपों का भ्रमण करके देखा कि कुछ यज्ञ मण्डप विधान पूर्वक नहीं बनते हैं, हवन कुण्डों का आकार शास्त्रोक्त नहीं होता, सड़क चलता कोई भी व्यक्ति बैठकर हवन करने लग जाता है जिसे विधान की कोई जानकारी नहीं है, शुद्धि के ऊपर ध्यान नहीं दिया जाता। यज्ञ कराने वाले पंडित या आचार्यों का वेदोच्चारण अशुद्ध होता है, स्वर ठीक नहीं होता है, सामग्री अशुद्ध होती है, सामग्री सड़क पर पड़ी होती है जिस पर पशु बैठे होते हैं। हम किसी को भोज के लिये आमंत्रित करें और शुद्ध स्वादिष्ट भोजन पकवान के स्थान पर अशुद्ध या सड़ा हुआ दुर्गन्धयुक्त भोजन परोसें तो एक साधारण व्यक्ति भी अपशब्द कहता हुआ भोजन छोड़कर चला जायेगा। इसी तरह हम देवताओं को आमंत्रित करें और उन्हें समिधा में यूरिया और अन्य विशैले उर्वरकों या कीटनाशक युक्त शर्करा, जौ, तिल, घृत आदि सामग्री से हवन करें तो असीमित शक्ति के धनी देवता निश्चित रूप से कुपित होकर यज्ञकर्ता को दण्डित करेंगे और चले जायेंगे। यज्ञ का नकारात्मक हानिकारक फल होगा।’’
ब्रह्मचारी गिरीश ने यज्ञ आयोजकों से करबद्ध विनम्र अनुरोध किया कि वे केवल सिद्धहस्त, योग्य यज्ञ विशेषज्ञों द्वारा ही यज्ञ का संपादन करायें। यदि उनके पास विशेषज्ञ न हों तो पहले उन्हें योग्य आचार्यों से प्रशिक्षित करा लें। यदि सहायता की आवश्यकता हो तो महर्षि वेद विज्ञान विश्व विद्यापीठम् प्रशिक्षण कराने को तैयार है।
ब्रह्मचारी गिरीश ने यह भी बताया कि महर्षि विद्यापीठ के ब्रह्मस्थान, करौंदी, सिहोरा परिसर में 1331 वैदिक पंडितों द्वारा एक पाठात्मक अतिरुद्र महायज्ञ नित्य संपादित हो रहा है। साथ ही भोपाल परिसर में अब तक 5 लक्षचण्डी महायज्ञ पूर्ण हो चुके हैं और छठवाँ चल रहा है। महर्षि महेश योगी जी ने अनेक वर्षों तक भारत के श्रेष्ठतम और योग्य यज्ञाचार्यों और वैदिक विद्वानों के साथ सलाह करके लगभग 300 लुप्तप्राय यज्ञ विधानों को पुनःजाग्रत किया और वैदिक पंडितों का प्रशिक्षण किया। गौरतलब है कि महर्षि वेद विज्ञान विद्यापीठम् ट्रस्ट अब तक लगभग 60,000 वैदिक विद्वानों, कर्मकाड विशेषज्ञों, याज्ञिकों का प्रशिक्षण करा चुका है जो सम्पूर्ण विश्व में फैले हुए हैं और विशुद्ध वैदिक तरीके से यज्ञानुष्ठान आदि सम्पादित करते व कराते हैं।

विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क 
महर्षि शिक्षा संस्थान

Monday, February 26, 2018

Maharishi Organisation to establish Maharishi Ved Peeths in entire India

महर्षि संस्थान सम्पूर्ण भारत में
महर्षि वेद पीठों की स्थापना करेगा

Brahmchari Girish Chandra Varma Ji
महर्षि संस्थान के पदाधिकारियों की बैठक में परम पूज्य महर्षि महेश योगी के प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने उद्घोषणा की कि “आगे आने वाले समय में पहले भारत के प्रत्येक जिले में और फिर विकास खण्डों में महर्षि वेद पीठ की स्थापना की जायेगी। इन पीठों में वैदिक वांगमय के सभी विषयों का सैद्धाँतिक और प्रायोगिक ज्ञान हर नागरिक को अत्यन्त सरलता से एवं शुद्धता से उपलब्ध कराया जायेगा। वैदिक वांगमय में सुखी जीवन के लिये विभिन्न क्षेत्रों के सिद्धाँत व प्रयोग दिये गये हैं, इसका उपयोग मनुष्य को हर दृष्टि से सुखी बना सकता है।"
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने बतलाया कि ‘‘परम पूज्य महर्षि महेश योगी ज्योतिष्पीठोद्धारक ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य अनन्त श्री विभूषित स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज बद्रिकाश्रम हिमालय के शिष्य थे और उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में अपने गुरुदेव के आशीर्वाद से वैदिक ज्ञान विज्ञान का प्रचार-प्रसार करके भारत का सम्मान बढ़ाया। महर्षि जी ने स्वयं को कभी गुरू नहीं कहा न अपनी पूजा करवाई, केवल अपने गुरुदेव की ही पूजा करवाकर जय गुरु देव का उद्घोष करते हुए सारा कार्य किया। आजकल तो अपने आप को गुरू, भगवान और न जाने क्या-क्या कहलवाने और अपनी पूजा करवाने की होड़ सी लगी है। भारत की ये वैदिक पीठ श्री गुरुदेव की कृपा और महर्षि जी के आशीर्वाद से स्थापित होंगी और उनकी ही ज्ञान परम्परा का पालन करेंगी।’’
वैदिक ज्ञान की सबको आवश्यकता है। भारतवर्ष में सैकड़ों संस्थान वेद-विज्ञान के प्रचार-प्रसार, अध्ययन-अध्यापन में अपना-अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। महर्षि संस्थान भारतवर्ष के समान उद्देश्यों वाले संस्थान को साथ लेकर विस्तृत योजना बनाकर इसका क्रियान्वयन करेगा। सर्वे भवन्तु सुखिनः ही इस योजना का परम उद्देश्य होगा।
महर्षि वेद पीठों में सैद्धांतिक अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ योगाभ्यास, प्राणायाम, भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम, योगिक उड़ान जैसे साधना के कार्यक्रम भी आयोजित किये जायें। इसके अतिरिक्त जीवन को वैदिक उपायों से सुखी, समृद्ध, स्वस्थ, सुरक्षित, प्रबुद्ध तथा अजेय बनाने के लिये परामर्श भी दिया जायेगा।

विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क 
महर्षि शिक्षा संस्थान

Friday, February 23, 2018

Ram Rajya can also be established in Kaliyuga


कलियुग में भी रामराज्य स्थापित हो सकता है


Brahmachari Shri Girish Chandra Varma 
ब्रह्मलीन परम पूज्य महर्षि महेश योगी के परम प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने वैदिक पण्डितों को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘‘इस कलियुग में भी रामराज्य की स्थापना हो सकती है। महर्षि जी ने कुछ वर्ष पूर्व ही विश्वव्यापी रामराज्य स्थापित करने की घोषणा कर दी थी और भारत के भौगोलिक केन्द्र-भारत के ब्रह्मस्थान में इस रामराज्य की वैश्विक राजधानी स्थापित की थी। रामराज्य की स्थापना का आधार आदर्श व्यक्ति, आदर्श समाज और आदर्श राष्ट्र का निर्माण है। जब प्रबुद्ध नागरिकों, अजेय व शाँतिपूर्ण राष्ट्रों का निर्माण होगा तभी धरा पर रामराज्य की पुनः स्थापना होगी-भूतल पर स्वर्ग का अवतरण होगा, जहां प्रत्येक व्यक्ति के लिये सबकुछ उत्तम होगा, किसी भी व्यक्ति के लिये कुछ भी अनुत्तम नहीं होगा "।


ब्रह्मचारी गिरीश ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ‘‘जब हम रामराज्य की बात करते हैं तो अधिकतर व्यक्ति यह सोचते हैं कि इसका केवल धर्म से ही सम्बन्ध है। वास्तव में रामराज्य, जीवन व्यवस्था का एक उच्च स्तरीय वैज्ञानिक सिद्धांत है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपना सकता है, किसी भी धर्म की भावनाओं एवं बंधन को छोड़े बिना ही। श्रीरामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकाण्ड में रामराज्य का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है। ऐसा रामराज्य वर्तमान समय में भी स्थापित करना वैदिक विज्ञान और उसके प्रयोगों को अपनाकर पूर्णतः सम्भव है।

“रामराज्य के वर्णन में बताया गया है कि प्रजा के सारे शोक संताप मिट गये, परस्पर भेद, राग, द्वे श मिट गये, चारों आश्रमों और वर्णों के लोग वेद अर्थात् ज्ञान मार्ग पर चलकर धर्म परायण हो गये, शोक भय रोग मिट गये, दैहिक, दैविक और भौतिक ताप मिट गये, पापों का शमन हो गया, निर्धनता समाप्त हो गई, अकाल मृत्यु की घटनायें समाप्त हो गईं, संघर्ष और दुःख मिट गया, प्रजा परोपकारी परस्पर सौहार्दता वाली हो गई, काम क्रोध मोह जैसे विकारों का अन्त हो गया, पशु-पक्षी आपस में वैर भुलाकर साथ रहने लगे, ऋतुयें समय पर आने लगीं, बाढ़ सूखा आदि प्राकृतिक आपदाओं का निवारण हुआ, नगर सुन्दर हो गये, लतायें पुष्प मधु टपकाने लगे, गौयें मनचाहा दूध देने लगीं, बादल मनचाही जल वृष्टि करने लग गये। यह सब आज भी संभव है। इसमें न कहीं किसी धर्म विशेष की बात है और न ही राजनीति की। "

उन्होंने कहा कि ‘‘वर्तमान में जिस तरह श्रीरामजी और रामराज्य का मुद्दा विवादित बना दिया गया हैं, उससे न रामजी प्रसन्न होने वाले हैं, न रामराज्य की स्थापना होने वाली है। जब भक्त अपनी शुद्ध चेतना और आत्मा के स्तर पर श्रीराम को इष्ट बनाकर उनकी अविरल निष्काम निर्विकार भक्ति में लीन होंगे और श्रीरामजी द्वारा स्थापित मर्यादा का पालन करेंगे तो रामराज्य की स्थापना होगी और जनमानस सुखी होगा। आज की आवश्यकता है कि रामराज्य के आदर्शों को शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर अध्यापित कराया जाये, उनके गुण, चरित्र, आदर्श, सिद्धाँत और प्रयोगों से नई पीढ़ी को अवगत कराया जाये, रामचरित मानस केवल एक ग्रन्थ सारी सामाजिक नकारात्मकताओं को हटाकर पूर्ण सकारात्मकता का उदय कर सकता है सारी समस्याओं का हल दे सकता है।“

उन्होंने सेकुलर शब्द की त्रुटिपूर्ण व्याख्या और सरकारों का उसमें अटक जाने को लेकर कहा कि सेकुलर तो केवल प्रकृति है जो किसी से भी भेदभाव किये बिना समभाव बनाये रखती है, बाकी सब सेकुलर शब्द का दुरुपयोग अपने-अपने ढंग से अपने निहित स्वार्थों के लिये करते हैं। राम मन्दिर निर्माण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि ‘‘हर रामभक्त अपने इष्ट का मन्दिर चाहता है, मन्दिर तो बनना ही चाहिए पर उससे पहले मन मन्दिर में राम को बसाना होगा। जब तक हृदयों में-अव्यक्त के क्षेत्र में श्रीराम नहीं बसेंगे, तब तक श्रीराम व्यक्त रूप में-भौतिक रूप से स्थापित नहीं होंगे।"

ब्रह्मचारी गिरीश ने सम्बोधन के अंत में कहा कि “महर्षि जी ने हम सबको दोनों तरह का ज्ञान; शाश्वत् वैदिक ज्ञान और अत्याधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान, जो दोनों परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं, उपहार में दिया है। हमारी तैयारी पूरी है। हमारे पास इस ब्रह्माण्डीय प्रशासकीय बुद्धिमत्ता का पर्याप्त ज्ञान है, जिसे हम समाज, नगर, प्रान्त एवं राष्ट्र की सामूहिक चेतना में इसके सुव्यवस्थित, विकासात्मक प्रभाव को शांत भाव से समावेशित करने के लिए प्रयोग में ला सकते हैं एवं इसके द्वारा जीवन के प्रत्येक स्तर पर गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं, रामराज्य की स्थापना कर सकते हैं।"

गिरीश जी ने वैदिक पण्डितों से कहा कि आप सब वैदिक ज्ञान-विज्ञान के अधिष्ठाता हैं, आप अपने दायित्व को ईमानदारी से निभायें, सारे विश्वा परिवार का कल्याण होगा।

विजय रत्न खरे,  निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क
महर्षि शिक्षा संस्थान



Monday, February 19, 2018

Everything is Vedic सबकुछ वैदिक ही है

सबकुछ वैदिक ही है


Brahmachari Dr. Girish Varma Ji
वेद से तात्पर्य ज्ञान से है वैदिक मार्ग से तात्पर्य उस मार्ग से है जो ज्ञान-पूर्ण ज्ञान-शुद्ध  ज्ञान प्राकृतिक विधान के पूर्ण सामर्थ्य पर आधारित है यह सृष्टि एवं प्रशासन का मुख्य आधार है जो सृष्टि की अनन्त विविधताओं को पूर्ण सुव्यवस्था के साथ शासित करता है इसीलिये वेद को सृष्टि का संविधान भी कहा गया है । प्राकृतिक विधान की यह आंतरिक बुद्धिमत्ता व्यक्तिगत स्तर पर मानव शरीरिकी की संरचना एवं कार्यप्रणाली का आधार है एवं वृहत स्तर पर यह ब्रह्माण्डीय संरचना सृष्टि का आधार है । जैसी मानव शारीरिकी है वैसी ही सृष्टि है ।

‘ यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे '

प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के अन्दर विद्यमान इस आंतरिक बुद्धिमत्ता को इसकी पूर्ण संगठन शक्ति को प्रदर्शित करने एवं मानव जीवन एवं व्यवहार को प्राकृतिक विधानों की ऊर्ध्वगामी दिशा में विकास करने के लिए पूर्णतया जीवंत किया जा सकता है ऐसा करने से कोई भी व्यक्ति प्राकृतिक विधानों का उल्लंघन नहीं करेगा एवं कोई भी व्यक्ति उसके स्वयं के लिए अथवा समाज में किसी अन्य व्यक्ति के लिए दुःख का आधार सृजित नहीं करेगा। जब हम वैदिक प्रक्रियाओं द्वारा बुद्धिमत्ता को जीवंत करते हैं, तो हम उसके साथ ही जीवन के तीनों क्षेत्रों-आध्यात्मिक चेतना का भावातीत स्तर आधिदैविक चेतना का बौद्धिक एवं मानसिक स्तर एवं आधिभौतिक वह चेतना जो भौतिक शरीर भौतिक सृष्टि को संचालित करती है को एक साथ जीवंत करते हैं । प्राकृतिक विधान की पूर्णता ही प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा है। यह अव्यक्त एवं भावातीत है क्योंकि उस स्तर पर इसमें चेतना की समस्त संभावनायें जाग्रत रहती हैं यही चेतना की पूर्ण आत्मपरक अवस्था-आत्मनिष्ठता वस्तुनिष्ठता एवं उनके संबंधों के समस्त मूल्यों की एकीकृत अवस्था होती है ।

ब्रह्मचारी गिरीश जी ने विद्वानों से बातचीत में इस गूढ़ वैदिक ज्ञान का रहस्योघाटन किया। ब्रह्मचारी जी ने कहा सब कुछ वैदिक ही है अर्थात् सब कुछ ज्ञान से ही निर्मित है। जो वेद विरोधी ज्ञान विरोधी भारतीयता विरोधी हैं उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि उनका अपना शरीर उसके आधार में स्थित चेतना और उनकी प्रत्येक श्वास भी वैदिक है ज्ञानमय है। मानव जीवन के समस्त क्षेत्रों को पूर्ण बनाने अधिक प्रभावी एवं उपयोगी बनाने के लिए इनमें वैदिक ज्ञान का समावेश करने की आवश्यकता है। ये क्षेत्र हैं शिक्षा स्वास्थ्य कृषि पर्यावरण एवं वन शासन सुरक्षा प्रशासन प्रबंधन अर्थव्यवस्था वित्त मानव संसाधन विकास विधि एवं न्याय व्यवसाय एवं वाणिज्य व्यापार एवं उद्योग संस्कृति वास्तुकला पुनर्वास राजनीति धर्म कला एवं संस्कृति संचार सूचना एवं प्रसारण विदेश नीति विज्ञान एवं तकनीकी युवा कल्याण समाज कल्याण प्राकृतिक संसाधन ग्राम विकास महिला एवं बाल कल्याण और अन्य। वैदिक सिद्धांत एवं प्रयोग जीवन के इन क्षेत्रों को परिपूर्ण एवं सशक्त करेंगे एवं सत्व का अमिट प्रभाव राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक रेशे में प्रवेश कर राष्ट्रीय चेतना का नवीन जागरण करेगा शुद्धता उदित होगी एवं भारत अधिक सुदृढ़ एवं तेजस्वी होगा । भारतीय प्रशासकों का व्यक्तिगत अहम् राष्ट्रीय अहम् तक ऊपर उठेगा राष्ट्रीय अहम् वैश्विक अहम् तक ऊपर उठा देगा वे प्राकृतिक विधान के प्रशासक होंगे प्रत्येक नागरिक के प्रगति मार्ग को समर्थित एवं गौरवान्वित करेंगे एवं भारत में भारतीय प्रशासन को सृजित करेंगे। व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वैदिक सिद्धांतों एवं प्रयोगों के समावेश से भारत में आश्चर्यजनक उपलब्धियां होंगी ।

विजय रत्न खरे, निदेशक, संचार एवं जनसम्पर्क 

महर्षि शिक्षा संस्थान

Thursday, February 15, 2018

संतों और श्रेष्ठजनों के विचारों और सुझावों के क्रियान्वयन की महती आवश्यकता

संतों और श्रेष्ठजनों के विचारों और सुझावों के क्रियान्वयन की महती आवश्यकता


Brahmachari Girish Chandra Varma Ji
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने कहा है कि ‘‘भारतभर में शिक्षा, ज्ञान, वेद सम्बन्धित अनेकों विचार संगोष्ठियों, सभाओं आदि का आयोजन होता है। सभी आयोजक बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं। देश विदेश से पधारे अनेक विद्वान, वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, समाजसेवी, साधु-संत, राजनेताओं की उपस्थिति और उनके द्वारा व्यक्त विचारों में कुछ अत्यन्त प्रायोगिक और उपयोगी सुझाव होते हैं किन्तु उन जनोपयोगी, जीवनोपयोगी विचारों और सुझावों को लागू करने की दिशा में कोई कार्य नहीं होता।"
हाल ही में आयोजित एक सभा में उन्होंने एक वक्ता का संदर्भ लेते हुए कहा कि ‘‘यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने विचार होते हैं। सद्विचारों के कारण व्यक्ति एक अच्छा व्यक्ति और कुविचारों के कारण एक दूसरा व्यक्ति बुरा व्यक्ति बनता है।" उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि वर्तमान में कोई भी विद्वान विचारों के स्रोत-भावातीत चेतना को जगाने की बात नहीं करते। चेतना ही जीवन का आधार है, समस्त विचारों की उत्पत्ति-अच्छे या बुरे विचार चेतना के स्तर-चेतना की शुद्धता पर ही निर्भर हैं। यदि बाल्यकाल से अष्टांग योग साधन और भावातीत ध्यान के माध्यम से चेतना को जागृत कर लिया जाये, शुद्ध कर लिया जाये, पवित्र कर लें तो उसकी प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति-विचार, वाणी, व्यवहार और कर्म सभी केवल सात्विक, शुद्ध, सकारात्मक होंगे। आज सबसे बड़ी आवश्यकता है अनुभवी श्रेष्ठजनों, संतों के सुझावों को जीवन संचालन में सम्मिलित करना। यदि हम जीवनपरक सिद्धाँतों और तकनीकों को जीवन दैनन्दिनी में सम्मिलित कर लें तो प्रत्येक व्यक्ति का जीवन धन्य होगा, दिव्य होगा।"
ब्रह्मचारी श्री गिरीश ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि “गाँव-गाँव में टायलेट बनाकर उसका उपयोग भूसा-चारा रखने के लिये करने का उदाहरण इस तथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि केवल भौतिक सुविधायें निर्मित कर देने से समाज या वातावरण में स्वच्छता नहीं आ जायेगी। आध्यात्मिक विकास, चेतना जगाना प्राथमिक आवश्यकता है। एक किसी विशेष कार्य के प्रति चेतना जगाना आधा-अधूरा कार्य है। समग्रता में चेतना की जागृति और विकास करना पड़ेगा, जिससे जीवन के समस्त क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति हो जाये। एकहि साधे सब सधे-आत्मा को जगालो, बस किसी को कुछ नहीं करना पड़ेगा। उपनिषद् में कहा है आत्मावारेदृष्टव्यः श्रोतव्यः मन्तव्यः निध्ध्यिासितव्यः। यह बहुत सरल है। भावातीत ध्यान के नियमित अभ्यास से चेतना की पूर्ण जागृति सम्भव है और तब जीवन का प्रत्येक क्षेत्र सकारात्मक होगा, जीवन सफल होगा। मध्यप्रदेश प्रान्त सर्वोत्कृष्ट प्रान्त बने यह पूर्णतः सम्भव है। प्रदेश की सामूहिक चेतना से यह पता लगेगा कि इस उपलब्धि में कितना समय लगेगा। सरकार की इसमें रूचि से और दृढ़ निश्चय होने से ही यह सम्भव होगा।”
उन्होंने कहा महर्षि संस्थान के पास ज्ञान है, तकनीक है और अपने स्तर पर हम चेतना जगाने का कार्य कर भी रहे हैं, यदि भारत की केन्द्र एवं राज्यों की सरकारें थोड़ा सहयोग करें तो शीघ्र परिणाम आयेगा।
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने बताया कि परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी ने वैदिक ज्ञान विज्ञान के आधार पर जीवन जीने की कला सहज रूप में उपलब्ध करा दी है। सभी को इसका लाभ लेना चाहिये।

विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क, महर्षि शिक्षा संस्थान

Tuesday, February 13, 2018

प्रत्येक मनुष्य ब्रह्म है, दलित कोई नहीं


Brahmachari Dr Girish Varma Ji
“जो मानव शरीर लेकर जन्मा है वो ब्रह्म है, दलित कोई नहीं है, निहित स्वार्थों के चलते ब्रह्म को दलित बताया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि चारों वर्ण उन्हीं की सृष्टि हैं जो गुण और कार्यों के अनुसार हैं। किसी भी मनुष्य या जाति को दलित कहना उचित नहीं है बल्कि इसे अपराध घोषित किया जाना चाहिये। प्रत्येक मनुष्य के जीवन का आधार उसकी चेतना है, उसकी आत्मा है। सर्वोच्च और श्रेष्ठतम कार्यों के आधार पर व्यक्ति ऊचाँ उठता है और किन्हीं निम्न श्रेणी के कार्यों के कारण वह एक बुरा या छोटा व्यक्ति कहलाता है। चेतना की उच्च अवस्था प्राप्त व्यक्ति श्रेष्ठ कहलाता है और बाकी उसका अनुसरण करते हैं।"

“राजनीतिक कारणों और स्वार्थ ने अच्छे खासे मनुष्य को दलित की संज्ञा तो दे दी है किन्तु उनके उत्थान के कोई उपाय नहीं किये हैं। यदि किये भी हैं तो कार्यक्रमों का पूर्ण लाभ उन तक नहीं पहुँच पा रहा है। सरकारें भी यह स्वीकार करती हैं। वास्तव में किसी को दलित कहना पाप-कर्म माना जाना चाहिए। महर्षि जी ने सारे विश्व के सभी धर्मों, विश्वास, आस्था, संप्रदाय, जाति और आयु के नागरिकों को भावातीत ध्यान, उसकी उन्नत तकनीक सिखाकर और वेद विज्ञान के ज्ञान द्वारा चेतना की उच्चावस्था का अनुभव कराया। जाग्रत, स्वप्न, सुशुप्ति, भावातीत, तुरीयातीत, भगवत् और ब्राह्मीय चेतना का सैद्धांतिक ज्ञान व प्रायोगिक तकनीक देकर उन्हें अहं ब्रह्मास्मि, आत्मैवेदमसर्वं, सर्वंखलुइदम ब्रह्म का अनुभव कराया। संतों की यही महानता और इनका यही आशीर्वाद तो प्रत्येक व्यक्ति को ब्रह्म बनाता है और साधारण स्वार्थी मनुष्य ब्रह्म को दलित बना देते हैं।’’ हाल ही में भारत के श्रेष्ठतम सन्तों की उपस्थिति में ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यह विचार रखे।

ब्रह्मचारी जी ने संतों से निवेदन किया कि वे ब्रह्म को दलित बनाए जाने की कुत्सित चालों को अपने ज्ञान और आशीर्वाद से नाकाम कर दें, प्रत्येक मनुष्य को अहं ब्रह्मास्मि का बोध करा दें। उन्होंने भारतीय नागरिकों से अनुरोध किया कि भविष्य में कोई व्यक्ति दलित कहलाकर अपने को छोटा, दुर्बल, निर्धन, दीन-हीन ना समझे। समाज में सब ब्रह्मत्व को प्राप्त करें, सब आनन्दमय जीवन जियें, सब जीवन को पूर्ण बनायें, स्वस्थ्य रहें, सम्पन्न हों, ज्ञानी हों, प्रबुद्ध हों, अजेय हों। सर्वेभवन्तु सुखिनः केवल सिद्धाँत नहीं है, केवल एक उक्ति नहीं है, यह वास्तविकता है, यह पूर्णरूपेण सम्भव है। भारतीय सन्तों की तपस्या पहले भारत और फिर भारत के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व के जनमानस के लिये कल्याणकारी सिद्ध होगी।

विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क 
महर्षि शिक्षा संस्थान

Wednesday, February 7, 2018

प्राकृतिक आपदाओं का कारण - प्रकृति के नियमों का उल्लंघन


Brahmachari Dr Girish Chandra Varma Ji

"प्रकृति के नियमों का पालन होकर उनका सामूहिक उल्लंघन ही प्राकृतिक असंतुलन और आपदाओं का कारण है। विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय वर्तमान की शिक्षा में प्रकृति के नियमों का कोई पाठ और प्रयोग नहीं है। व्यक्ति अज्ञान और अनेकानेक कामनाओं की पूर्ति होने के कारण तनाव और चिंताग्रस्त होता है। व्यक्तिगत तनाव सामाजिक स्तर पर एक बड़े तनाव का गठन करते हैं और ये सामूहिक तनाव बड़े स्तर पर प्राकृतिक आपदा लाते हैं। इसमें बाढ़, सूखा, भूकम्प, बीमारियाँ, दुर्घटनायें आदि सम्मिलित हैं। एक व्यक्ति द्वारा अपराध कारित किये जाने पर राष्ट्रीय विधान उसे दण्ड देते हैं। कुछ व्यक्तियों द्वारा मिलकर अपराध किये जाने पर अधिक गंभीर दण्ड का प्रावधान है। इसी तरह प्रकृति उसके नियमों के सामूहिक उल्लंघन करने पर आपदाओं के रूप में सामूहिक दण्ड देती है।" यह विचार ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी के परम प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने व्यक्त किये।
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आगे कहा कि "आज की शिक्षा विदेशों से ली गई शिक्षा प्रणाली है। इसमें कहीं भी मानवीयता का, भारतीय शाश्वत वैदिक ज्ञान - विज्ञान का समावेश अब तक नहीं किया गया है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात अनेक सरकारों में विदेशों से शिक्षा प्राप्त राजनेता थे जिन्हें भारतीय ज्ञान और शिक्षा का अनुभव नहीं था। अतः जो शिक्षा उन्होंने ली थी उसी को श्रेष्ठ समझकर स्वतंत्र भारत की शिक्षा प्रणाली बना दी। स्वतंत्र भारत में शिक्षा की नींव ही गलत पड़ गई जिसका दुष्परिणाम भारत आज तक भोग रहा है।"
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने प्रश्न पूछा कि "हजारों लाखों वर्ष पूर्व ज्ञान देने वाले ऋषि, महर्षि क्या पी.एचडी. या एम.बी.. थे? जो ज्ञान उस समय दिया गया वह आज भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उतना ही प्रासांगिक है जितना तब था। उसी वैदिक ज्ञान के कारण भारत प्रतिभारत, जगतगुरु भारत था। हम आज भी अपने राष्ट्र को सर्वोच्च शक्तिशाली, ज्ञानवान बना सकते हैं बशर्ते हम शिक्षा के सभी विषयों और स्तरों पर भारतीय वैदिक ज्ञान-विज्ञान को सम्मिलित कर दें।"
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यह भी पूछा कि "आज की आधुनिक शिक्षा प्राप्त करके कोई ऋषि या ब्रह्मर्षि क्यों नहीं होते? सभी शिक्षाविद् इस तर्क से सहमत हैं किन्तु दुर्भाग्यवश कोई इस दिशा में आगे नहीं बढ़ता। सब किसी और के आगे बढ़ने की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं। सभी को आगे आना होगा और भारतीय ज्ञान-विज्ञान परक शिक्षा को वर्तमान शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित करने के लिये आवाज उठानी होगी।"
उल्लेखनीय है कि परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी ने सारे विश्व में हजारों शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की जिनमें चेतना पर आधारित शिक्षा, चेतना विज्ञान और वेद विज्ञान की शिक्षा प्रदान की जाती है। भारत वर्ष में महर्षि जी ने महर्षि विद्या मन्दिर विद्यालयों की श्रृंखला, इन्स्टीट्यूट्स, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों की स्थापना की है।

विजय रत्न खरे, निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क, महर्षि शिक्षा संस्थान