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Wednesday, April 15, 2020

Brahmachari Girish Ji Message 14-April-2020-Drishya Va Adrishya Shatru se Raksha


दृष्य व अदृष्य शत्रुओं से विश्व परिवार की रक्षा का उपाय

Brahmachari Girish Ji
कोरोना-कोरोना-कोरोना का रोना सुनते और रोते हुए सारी दुनिया त्रस्त है। अभी के हालात में तो केवल रोना ही समझ में आ रहा है, इस अदृश्य शत्रु से लड़ने के लिये किसी के पास कोई अस्त्र, कोई शस्त्र, कोई उपाय नहीं है। विश्व की तथाकथित महाशक्तियों के सारे अस्त्र-शस्त्र, अणु और परमाणु बम, हजारों किलो-मीटर तक मार कर सकने वाली जानलेवा भयानक मिसाइलें, बड़े-बड़े क्षेत्रों को एक गोले से उड़ा देने वाली तोपें और टैंक सब धरे रह गये, फुस्स हो गये। एक बिलियन अमेरिकन डालर के अमेरिकन फाइटर जहाज और फ्रांस जैसे शक्तिशाली राष्ट्र का बहुचर्चित फाइटर जहाज राफेल और मिराज, ब्रिटेन का जगुआर और रशियन सुखोई और मिग आदि सब ग्राउन्डेड हो गये। अपनी भौतिक सैन्य शक्ति के बल पर हजारों किलोमीटर दूर के देशों में घुसकर उनकी स्वतंत्रता का हनन करके उनके राष्ट्राध्यक्षों को मौत की नींद सुला देने वाले अमेरिका को एक छोटे से अदृश्य शत्रु का सामना करने में पसीने छूट रहे हैं। इस महाशक्तिशाली अदृष्य शत्रु ने तथाकथित महाशक्तियों के दाँत खट्टे ही नहीं कर दिये, दांतों से लोहे के चने भर नहीं चबवा दिये, बल्कि दाँत तोड़ दिये। राष्ट्रों के अध्यक्ष स्वयं, उनके परिवार के सदस्य, सेना के सिपाही, अधिकारी, राजनेता, अभिनेता, व्यापारी, चिकित्सक आदि कोई इससे बच नहीं पा रहा है। सब त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं। विश्व में कोरोना पीड़ितों की संख्या 20,00,000 पहुँच रही है, इनमें से 1,25,000 की मृत्यु हो चुकी है। भारतवर्ष में मामले 9000 से ऊपर जा चुके हैं और 350 से अधिक की मृत्यु हो चुकी है। इस महामारी को तीसरे विश्व युद्ध का नाम दिया जा रहा है, जहाँ 200 से भी अधिक देश अदृश्य शत्रु से युद्ध कर रहे हैं। किसी के पास इसको समाप्त करने की औषधि, अस्त्र, शस्त्र, उपाय नहीं हैं। अनेक देशों के वैज्ञानिक उपाय खोजने में व्यस्त हैं और आशा की जा रही है कि कुछ समाधान शीघ्र निकल आयेगा। पर सुपरपावरस् की हेकड़ी, अभिमान तो धाराशायी हो गया है। उस पर भी अमेरिकन राष्ट्रपति ने एक तो भारत से औषधि की भिक्षा मांगी और वो भी धमकी भरे लहजे में। भिक्षा तो भारत में साधु भी मांगते हैं, बौद्ध भिक्षुक भी होते हैं, किन्तु यहाँ भिक्षा विनम्र भाव से, मर्यादित होकर मांगी जाती है। भारत तो सीधा-साधा देश है, तुरन्त हाँ कर दी। कायदे से अमेरिका से कहा जाना चाहिये था कि यदि भारत से मित्रता की बात करते हो तो फिर धमकी क्यों दे रहे हो? पहले अपनी धमकी वापस लो फिर दवा देंगे। एक बात तो स्पष्ट हो गई कि आधुनिक विज्ञान अभी भी बहुत पिछड़ा हुआ है।
इस अदृश्य शत्रु का कोई अदृश्य उपाय भौतिक जगत में नहीं सूझ रहा है। इस अदृश्य, अव्यक्त को हराने का उपाय भी अदृश्य, अव्यक्त, निराकार चेतना के स्तर पर ही प्राप्त होगा। सारा प्रकट संसार अव्यक्त का ही प्राकट्य है। सगुण-साकार, निर्गुण-निराकार की ही अभिव्यक्ति है। जब व्यक्त के स्तर पर कोई उपाय न हो तो समझ लेना चाहिये कि वह उपाय अव्यक्त में है। साधना और अराधना, अध्यात्म और अधिदेव, योग और यज्ञ ही अव्यक्त के क्षेत्र को सम्हालने के उपाय हैं। यज्ञ-यजन की क्रिया है-परिवर्तन की क्रिया है। 
अन्धकार को प्रकाश में, रोग को निरोग में, दुःख को सुःख में, नकारात्मकता को सकारात्मकता में, निराशा को आशा में, कष्ट को आनन्द में परिवर्तित करने का एक मात्र उपाय यह परिवर्तन की कला और विज्ञान है-यज्ञ है।
वर्तमान दशा देखकर परम पूज्य महर्षि जी की अनेक बातें याद आती हैं जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 20-25-30 वर्ष पूर्व थीं। महर्षि जी ने अपनी भारतीय व अन्तर्राष्ट्रीय प्रेस वार्ताओं में और अपने प्रवचनों में अनेक बार विश्व के प्रशासकों, राजनेताओं और सरकारों को चेताया था और महर्षि जी ने बताया था कि वैदिक विद्या निवारक सिद्धाँतों और प्रयोगों से पूर्ण है और वर्तमान प्रशासन में इन सिद्धाँतों को सम्मिलित करके आगे आने वाली समस्याओं, प्राकृतिक आपदाओं और दुःख को रोका जा सकता है। उपनिषद् का ‘‘हेयम् दुःखम् अनागतम्’’ का सिद्धाँत, प्रिवेंशन का सिद्धाँत महर्षि जी ने हजारों बार याद दिलाया था, यहाँ तक कि इसके अनेक डेमों करके भी दिखाये थे किन्तु महर्षि द्वारा प्रचारित यह वैदिक ज्ञान-विज्ञान और तकनीक सब सेकुलर प्रधान और विभिन्न धर्म प्रधान राजनेताओं की भेंट चढ़ गया। ईसाईधर्म प्रधान और मुस्लिम धर्म प्रधान राष्ट्रों नें तो इसे अनदेखा कर ही दिया, भारत की सेकुलर सरकारों और नेताओं के गले भी भारत का शाश्वत् ज्ञान उतर नहीं पाया। हमें यहाँ लिखते हुए कोई संकोच नहीं है कि भारत के चार माननीय प्रधान मंत्रियों (स्व. श्री राजीव गाँधी, स्व. श्री नरसिंहा राव, स्व. श्री चन्द्रशेखर एवं स्व. श्री अटल बिहारी बाजपेय) को तो हमने स्वयं व्यक्तिगत रूप से मिलकर पूज्य महर्षि जी का लिखित संदेश सौंपा, किन्तु शायद वह कहीं फाइलों में दफन हो गया या रद्दी की टोकरी में चला गया। कुछ प्रधान मंत्रियों ने तो मिलने का समय भी नहीं दिया। कुछ के सचिवों ने संदेश लेकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। खैर छोड़िये इन बातों को, जिनके करने से अब कुछ नहीं बनेगा। यहाँ चर्चा इसलिये कर दी कि आप सबको ज्ञात रहे कि महर्षि जी ने अपनी ओर से भारत और विश्व को बचने और बचाने के लिये बहुत पहले ही सावधान कर दिया था। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी स्वयं साधक रहे हैं, अध्यात्म की और अधिदेव की शक्ति, उसका महत्व उन्हें ज्ञात है, किन्तु सेकुलर की डोर से बंधे होकर भारतीय ज्ञान-विज्ञान का उपयोग और  प्रयोग करने का कितना साहस वे कर पायेंगे, यह तो नहीं मालूम, हालाकि उन्होंने जो बड़े-बड़े कदम इस दिशा में उठायें हैं उससे आशा तो बंधती ही है और एक कवि ने कहा है ‘‘आशा से आकाश थमा है’’।
महर्षि जी ने विश्व मानवता के लिये बड़े सरल कार्यक्रम दिये हैं जिनको प्रयोग में लाकर भारत अथवा किसी भी राष्ट्र का शासन अपने देश के नागरिकों और विश्व परिवार के लिये सुख, समृद्धि, सर्वोन्मुखी विकास, उत्तम शिक्षा, पूर्ण स्वास्थ्य, निर्धनता उन्मूलन, प्रबुद्धता, अजेयता का प्रबन्ध सरलतापूर्वक कर सकता है। यहाँ कुछ सरल युक्तियों की चर्चा करते हैं। महर्षि जी द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान (Transcendental Meditation-TM) सम्पूर्ण विश्व में सर्वमान्य ध्यान पद्धति है जिसे 125 देशों से भी अधिक देशें में सभी धर्मों, विश्वास, आस्था, समुदाय के करोड़ों नागरिक अपना चुके हैं। 35 देशों के 230 स्वतंत्र शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों व सरकारी संस्थानों में 700 से भी अधिक किये गये वैज्ञानिक शोध व अनुसंधनों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भावातीत ध्यान के सकारात्मक एवं जीवनोपयोगी लाभप्रद परिणामों को दर्शाया है। उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में ध्यान की किसी भी पद्धति पर इतने वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं हुये हैं। वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया कि यदि किसी भी शहर या स्थान की जनसंख्या के एक प्रतिशत के बराबर संख्या में सामूहिक भावातीत ध्यान का अभ्यास प्रातः सन्ध्या किया जाये तो उस स्थान में सकारात्मक मूल्यों की अभिवृद्धि होने लगती है। 
कुछ वर्षों बाद वैज्ञानिकों ने अनुसंधान करके बताया कि यदि किसी भी एक स्थान पर एक समय भावातीत ध्यान के साथ महर्षि जी प्रणीत ‘‘सिद्धि कार्यक्रम और यौगिक फ्लाइंग’’ का सामूहिक अभ्यास किसी राष्ट्र की जनसंख्या के एक प्रतिशत के वर्गमूल के बराबर संख्या में किया जाये तो वहां न केवल समस्त सकारात्मक वातावरण निर्मित होता है साथ ही समस्त नकारात्मक प्रवृत्तियों और रूझानों का शमन भी होता है। महर्षि जी ने सर्वप्रथम 1983-1984 में अमेरिका के फेयरफील्ड, आयोवा में उस समय की विश्व जनसंख्या के एक प्रतिशत के वर्गमूल के बराबर अर्थात् 7000 भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम व यौगिक फ्लाइंग के अभ्यासकर्ताओं को एकत्र करके इस तथ्य को प्रमाणित भी कर दिया। इसके बाद विश्व के अनेक देशों में महर्षि विश्व शान्ति सभाओं के माध्यम से बार-बार इसकी महत्ता सिद्ध हुई।
महर्षि जी ने अजेय सुरक्षा के पूर्ण सिद्धाँत (Maharishi Absolute Theory of Defence) में राष्ट्रों के लिये सुरक्षा और अजयेता के सिद्धाँतों का निरूपण किया है और अनेक राष्ट्रों को तत्सम्बन्धी संदेश भी दिया है। महर्षि जी ने बिना किसी अतिरिक्त व्यय के देश के लिये अपनी-अपनी सेना में एक निवारक समूह (Prevention Wing in Army) बनाने का सुझाव दिया है। अनेक देशों के पास कई-कई लाख सैन्यकर्मी हैं। इनमें से किसी भी एक स्थान पर यदि 9000 सैनिकों का समूह, आर्मी के प्रिवेशन विंग में सम्मिलित कर दिया जाये तो उस देश ही नहीं, बल्कि सारे विश्व में शान्ति स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। सुनते हैं कि भारतवर्ष में आर्मी, नेवी, एयरफोर्स और पैरामिलिटरी फोर्सेस को मिलाकर लगभग 50,00,000 सैन्यकर्मी हैं। प्रिवेशनविंग में अलग से व्यक्तियों की नियुक्ति की आवश्यकता नहीं है। केवल 9000 व्यक्ति एक स्थान पर प्रातः सन्ध्या लगभग 3-3 घंटे का भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम व योगिक फ्लाइंग का अभ्यास करें, शेष समय में वे अपनी सामान्य दिनचर्या पूरी करें। महर्षि जी का कहना था कि जब स्ट्रक्चरल इंजीनियर कोई भवन डिजाइन करते हैं तो भवन 2-3 गुना मजबूत हो, ऐसी संरचना करते हैं।
इसी तरह यदि भारतवर्ष में उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और भारत के केन्द्र में 5 समूह साधकों के बना लिये जायें तो भारत और विश्व की सामूहिक चेतना पाँच गुनी सतोगुणी-शुद्ध हो जायेगी और वर्तमान से लेकर आगे आने वाले समय के लिये भारत और समूचा विश्व परिवार सुरक्षित होगा, अजेय होगा, सम्पूर्ण मानवता के जीवन में समस्त क्षेत्रों का निरन्तर ऊध्र्वगामी विकास होगा।
हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी, गृहमंत्री माननीय श्री अमित शाह जी, भारत के रक्षामंत्री माननीय श्री राजनाथ सिंह जी एवं वित्तमंत्री माननीय श्रीमती निर्मला सीतारमन जी से निवेदन है कि वे इस वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित कार्यक्रम को कहीं भी एक 9000 के समूह में लागू करके देखें। इसके अलावा भारत और विश्व की सामूहिक चेतना में सतोगुण बढ़ाकर, रजोगुण और तमोगुण घटाकर प्रकृति के संतुलन का कोई और उपाय नहीं है।
महर्षि जी की एक और बात ध्यान देने योग्य है। शत्रु को कब रोकें? जब वह हम पर आक्रमण कर दे तब? जब वह सीमा पर आक्रमण कर रहा हो तब? जब वह अपने शिविरों में युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा हो तब? नहीं, हम शत्रु को तब ही रोक लें जब उसके मन मस्तिष्क में शत्रुता का भाव उत्पन्न होने वाला हो। यही ‘‘हेयम् दुःखम अनागतम’’ है, यही "Victory before war" है। 9000 साधकों का समूह यही कार्य करेगा, वह किसी के मन में शत्रुता का भाव उत्पन्न ही नहीं होने देगा। उपनिषद् ने ये भी कहा है- ‘‘तत्सन्निधौवैरत्यागः’’ उस सत्व की परिधि में-सन्निधि में वैर भाव का त्याग हो जाता है।
महर्षि संस्थान सरकार से केवल निवेदन कर सकता है। सरकार इस पर विश्वास करे या नहीं, इसे अपनाये या नहीं, यह संस्थान के अधिकार से परे है और राष्ट्र की सामूहिक चेतना में सतोगुण के स्तर पर निर्भर है। आपको ज्ञात है कि कोरोना का सामना करने के लिये सरकार को लगभग 200,000 करोड़ की राशि व्यय करनी पड़ रही है। इसके अतिरिक्त न जाने कितनी राशि की अर्थव्यवस्था नीचे चली जायेगी, करोड़ों की संख्या में बेरोजगारी बढ़ने का भय है, इन्डस्ट्रीज के उत्पादन में गिरावट आयेगी, निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा, मँहगाई बढ़ेगी, आर्थिक विकास की दर गिरेगी, स्वास्थ्य बजट बढ़ेगा, प्रति व्यक्ति आय घटेगी आदि-आदि हानि सरकार की और अपने देश को होगी। वैश्विक व्यवस्था पर भी इसका दुष्प्रभाव होगा। इन सब हानि की सम्भावनाओं का विचार करके ही भय और चिन्ता का अनुभव होने लगता है।
महर्षि जी ने विश्व के और भारत के शीर्षस्थ व्यापारी और धनिकों को कई बार संदेश भेजा था कि सब मिलकर 9000 साधकों के समूह बना लें। हम स्वयं भारत के कुछ शीर्ष व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के प्रमुखों से मिले थे और विश्व शाँति स्थापित करने वाले इन समूहों की स्थापना का प्रस्ताव दिया था किन्तु दुर्भाग्यवश किसी ने इसमें रूचि नहीं दिखाई। महर्षि जी कहते थे कि यदि राष्ट्र पर कभी ऐसी आपदा आयेगी तो सर्वाधिक हानि धनिकों की ही होगी। अब हम सब नित्य देख रहे हैं कि प्रतिदिन लाखों करोड़ों रुपये मूल्य के शेयर धनिकों के ही डूब रहे हैं।
अभी भी समय है। 9000 के एक समूह की स्थापना में इस हानि की तुलना में, या सरकार के बजट की तुलना में एक बहुत छोटी राशि की आवश्यकता है। यदि सरकार अपने कर्मचारियों से ये समूह बना ले तो कोई अतिरिक्त व्यय नहीं होगा। यदि व्यापारी वर्ग मिलकर ये समूह बनाना चाहें तो उसका वजट इस प्रकार होगा।
10,000 व्यक्ति ग रु. 20,000 प्रति माह प्रति व्यक्ति व्यय = रु. 20,00,00,000 अर्थात् रु. 20 करोड़ प्रतिमाह ग 12 माह = रु. 240 करोड़ रुपये प्रति वर्ष।
यदि भारत के बड़े व्यापारी लगभग 5000 करोड़ (पाँच हजार करोड़) का एक अक्षयफण्ड (Endowment Fund) विश्व शाँति की स्थापना के लिये बना दें तो उसके ब्याज से ही 10,000 व्यक्तियों का यह समूह प्रायोजित हो जायेगा।
10,000 के आवास, रसोई, भोजनालय, प्रयोगशाला, ध्यान कक्ष, कार्यालय, परिसर का विकास आदि के लिये केवल एक बार 10,000 व्यक्ति ग रु. 3,00,000 प्रति व्यक्ति अर्थात् लगभग रु. 300 करोड़ की राशि की आवश्यकता होगी। 
भारत के श्रेष्ठतम या घनी या विकसित प्रान्त  महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान एवं केरल यदि 1000 शाँति स्थापित करने वाले साधकों का व्यय वहन कर लें तो यह मात्र 24 करोड़ (चैबीस करोड़) रुपये प्रतिवर्ष आता है, जो कुछ भी नहीं है। आसानी से ये प्रान्त अपना योगदान दे सकते हैं। आवास के लिये केवल रु. 30 करोड़ एक बार देने की आवश्यकता है, यदि प्रान्तीय सरकारें इतना भी अपने नागरिकों के लिये न कर सकें तो क्या किया जा सकता है?
उल्लेखनीय है कि भारत के ब्रह्मस्थान में महर्षि संस्थान ने 3000 साधकों के आवास की व्यवस्था कर ली है अर्थात् अब केवल 7000 की व्यवस्था और करनी है। ये अत्यन्त सरल है और करने योग्य है। अभी प्रधानमंत्री केयर फण्ड में व्यापारी हजारों करोड़ दे रहे हैं, यह एक अच्छा कदम है, किन्तु समस्या आने पर उपाय ढूढ़ना, ये बुद्धिमानी नहीं है। समस्या की स्थायी रोकथाम, निवारण, प्रिवेन्शन ही बुद्धिमानी है।
यहाँ यह बताना आवश्यक है कि केवल एक रुपये चैरासी पैसे (रु. 1.84) प्रतिवर्ष प्रतिनागरिक के व्यय से 130 करोड़ भारतीयों की सुरक्षा हो जोयगी। ये भारत की केन्द्रीय सरकार या कुछ प्रान्तीय सरकारें अपने नागरिकों के लिये रु. 1.84 प्रतिवर्ष भी नहीं कर सकती? भारत में लगभग 10 करोड़ बेरोजगार युवा हैं। क्या सरकार इनमें से 10,000 को बेरोजगारी भत्ता देकर इस पावन कार्य में नहीं लगा सकती है?
यहाँ एक और बात मन में आ रही है और वह ये है कि यदि सेकुलर ढाँचे में बंधी राष्ट्रीय सरकार या प्रान्तीय सरकारें और भारतीय धनिक संकोचवश यह कार्य न कर पायें तो आइये, हम आम नागरिक मिलकर इस योजना का क्रियान्वयन कर लें। उच्च मध्यम वर्गीय परिवार यदि प्रतिमाह एक-एक व्यक्ति का व्यय प्रायोजित करता रहे तो भी इस शाँति स्थापना समूह की स्थापना तुरन्त की जा सकती है। विश्व के 1,20,000 व्यक्ति इस महामारी का शिकार हो चुके हैं। क्या भारत की 130 करोड़ जनसंख्या में से 10,000 स्वयंसेवी व्यक्ति या कुछ गैर सरकारी निजी संस्थान (NGOs) या मध्यम श्रेणी के व्यापारी हमें नहीं मिल सकते जो 20,000 रुपये प्रतिमाह अपने सहभारतीय नागरिकों के लिये व्यय कर सकें? एक और सम्भावना है और वह ये है कि क्या हमें 130 करोड़ भारतीयों में से 10,000 नागरिक नहीं मिल सकते जो अपना जीवन सम्पूर्ण विश्व परिवार के हित में साधना में लगा सकें? इन साधकों को भारत के भौगोलिक केन्द्र-ब्रह्मस्थान, जिला-कटनी (पूर्व में जिला जबलपुर था) में आकर अपना जीवन साधना और अराधना में व्यतीत करना होगा। दिन के कुछ घंटे ये साधक अन्य कार्य भी कर सकते हैं। कहा जाता है कि भारत में 60 वर्ष से ऊपर और 65 वर्ष से कम की अवस्था के लगभग 6 करोड़ नागरिक हैं। वैदिक भाषा में ये सभी ‘‘वानप्रस्थी’’ हैं, जिनका पारिवारिक दायित्व अब पूर्ण हो चुका है। क्या इनमें से 10,000 वानप्रस्थी अपना जीवन इस महायज्ञ में अर्पण कर सकते हैं? क्या इन 6 करोड़ वानप्रस्थियों में 10,000 इतने समर्थ नहीं हैं कि अपने ऊपर व्यय होने वाली राशि से इस समूह में रहकर जीवन निहर्वन कर सकें? यह बड़ी गंभीर मंत्रणा है। हम प्रत्येक भारतीय का आवाहन करते हैं कि कृपया हमारे आवहन पर गंभीरता पूर्वक विचार करें और सम्पूर्ण विश्व परिवार के हित में आगे आकर इस महायज्ञ में अपने योगदान की आहुति दें। आइये इस पीढ़ी में ही हम अपने आगे आने वाली समस्त पीढ़ियों के सुखमय, आनन्दमय, समस्या रहित, स्वस्थ्य जीवन के उपहार का स्थायी प्रबन्ध कर दें। यदि नहीं कर पायें तो? तो फिर जैसा समस्याग्रस्त विश्व और त्रस्त मानवता आज है, उसी के साक्षी बने रहना हमारे भाग्य में होगा। 

इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें-9893700746, 9425675485, 9425008470 ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, माँ कष्चित् दुःखभाग्भवेत् ।।

जय गुरु देव, जय महर्षि

विनीत

ब्रह्मचारी गिरीश
अध्यक्ष- महर्षि शिक्षा संस्थान समूह

1 comment:

  1. Very well said bhaiyaji. It's the need of the hour. This is the only time when it can be implemented, otherwise there'd be no hope.
    Last point of retired people is the best option where it can be implemented for very little expenses.

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