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Wednesday, February 13, 2019

Maharishi Smarak be open on 15 February

संगमतट पर महर्षि स्मारक का लोकार्पण 15 फरवरी को

महर्षि आश्रम अरैल संगमतट पर नवनिर्मित भव्य महर्षि स्मारक का लोकार्पण समारोह जया एकादशी 15 फरवरी 2019 को दोपहर 2 बजे आयोजित है। महर्षि महेश योगी जी के परम प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य वेद विद्या मार्तण्ड ब्रह्मचारी गिरीश जी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि ‘‘महर्षि महेश योगी आश्रम अरैल संगमतट पर महर्षि जी की पुण्य स्मृति में एक विशाल स्मारक का निर्माण किया गया है। यह स्मारक बाहर से जैसेलमेर (सैण्ड स्टोन) के सुनहरे पीले पत्थर से बना है और अन्दर सफेद रंग के मकराना मारबल से गर्भ गृह बनाया गया है। इस स्थापत्य वेद-वास्तुकला से निर्मित स्मारक में जैसेलमेर पत्थर के 22.6 फीट ऊँचे 52 खम्भे हैं और अन्दर मारबल के 22.6 फीट ऊँचे 12 खम्बे हैं जिनपर अति सुन्दर पारम्परिक नक्काशी की गई है। गर्भ गृह की आन्तरिक छत और चारों दिशाओं की 4 चैकियों की छत भी नक्काशीदार हैं। स्मारक की बीम्स हल्के गुलाबी बंसीपहाड़पुर पत्थर की हैं। स्मारक में कुल 200000 क्यूबिक फीट जैसलमेर पत्थर और सफेद मारबल पत्थर का उपयोग हुआ है जिसका वजन लगभग 20000 टन का है। यह निर्माण लगभग 11 वर्षों में पूर्ण हुआ है। इसके आर्किटेक्ट गुजरात के श्री निपम सोमपुरा हैं और उन्हीं के द्वारा यह निर्माण भी कराया गया है। इस महर्षि स्मारक की नींव लगभग 70 फीट गहरी है। स्मारक के सामरण (शिखर) पर 1008 गोल्ड प्लेटेड कलश हैं और प्रत्येक चैकी पर 108 गोल्ड प्लेटेड कलश हैं जो स्मारक की सुन्दरता और भव्यता को हजारों गुना बढ़ा देते हैं।

ब्रह्मचारी गिरीश जी ने बतलाया कि ‘‘महर्षि जी ने सम्पूर्ण विश्व में भारतीय शाश्वत् वैदिक ज्ञान-विज्ञान अष्टांग योग भावातीत ध्यान ज्योतिश गन्धर्ववेद वास्तु विद्या यज्ञानुष्ठान आदि जीवनोपयोगी वैदिक विद्याओं का पुनर्जागरण करके उन्हें मूल रूप में पुनः प्रतिष्ठापित किया है। महर्षि जी ने चेतना विज्ञान के सिद्धाँत और इसकी प्रायोगिक तकनीक विकसित करके विश्व के 120 से भी अधिक देशों करोंड़ों नागरिकों को प्रदान की है। 40000 से अधिक भावातीत ध्यान योग के शिक्षक तैयार किये हैं। हजारों विद्यालय महाविद्यालय विश्वविद्यालय संस्थानों की स्थापना की है। सम्पूर्ण इतिहास में वेद विद्या पर आधारित मानव कल्याणकारी इतना कार्य कभी किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया। यदि महर्षि जी के लिये ‘‘ भूतो भविष्यति’’ उक्ति का प्रयोग किया जावे तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी।
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने महर्षि स्मारक के निर्माण का उदेश्य बताते हुए कहा कि ‘‘महर्षि द्वारा किये गये एैतिहासिक और अभूतपूर्व कार्य कार्ययोजनायें उनके द्वारा प्रदत्त वैदिक ज्ञान विज्ञान के सिद्धाँत और प्रयोगों को विश्व परिवार के प्रत्येक सदस्य तक पहुँचाने की आवश्यकता है जिससे विश्व चेतना में सतोगुण की अभिवृद्धि होकर सुख शाँति स्वास्थ्य सम्पन्नता समृद्धि प्रबुद्धता अजेयता जैसी अति-आवश्यक मानव आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके मानव जीवन तनाव चिन्ता से मुक्त और आनन्द से परिपूरित हो। महर्षि जी ने अपने लाखों शिष्य तैयार किये हैं जो वैदिक विद्या को ग्रहण करके अब विद्यादान के पावन कार्य को कर रहे हैं। महर्षि स्मारक केवल पत्थर से निर्मित एक भवन रचना नहीं है वरन् दीर्घकाल तक आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये वैदिक ज्ञान-विज्ञान का जीवन्त चेतन प्रकाशमय स्मारक है जो ज्ञान जिज्ञासुओं को ज्ञान प्राप्ति ज्ञानदान और आध्यात्मिक विकास के लिये सदा प्रेरित करता रहेगा।
गिरीश जी ने प्रयागराज कुम्भ में पधारे महामण्डलेश्वरों साधुओं सन्यासियों विद्वानों और गणमान्यों का आवाहन किया है कि वे 15 फरवरी को दोपहर 2 बजे महर्षि स्मारक के लोकार्पण समारोह में अपनी दैवीय उपस्थिति से हमें अपना आशीष प्रदान करें।
सधन्यवाद जय गुरु देव जय महर्षि
विजय रत्न खरे निदेशकः संचार जन-सम्पर्क महर्षि समूह मोबाइलः +91 9425008470

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