अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता में
साधु संतों के आशीर्वाद से
महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष पूर्णता समारोह
का भव्य आयोजन
In centre of stage-Jyotishpeethadheeshwar Jagatguru Shankaracharya Swami Vasudevanand Saraswati Ji Maharaj |
भारत के महान सपूत एवं विश्व के प्रथम चेतना वैज्ञानिक परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी पहले ऐसे संत थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवनकाल शाश्वत् वैदिक भारतीय ज्ञान विज्ञान में निहित गूढ़ तत्वों तथा दर्शन को सरल व समझ सकने वाली भाषा में विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने की साधना में लगाया। उन्होंने प्रत्येक मानव में चेतना जागृत करने और उसे स्थायित्व देने हेतु ‘भावातीत ध्यान’ की सरल, सहज एवं प्रयास हीन पद्धति प्रदान की। परम पूज्य महर्षि जी ने पूर्ण जागृत चेतना से परिपूर्ण व्यक्ति को विश्व परिवार की एक सुगठित व अनुशासित इकाई निरुपित किया था। उनके अनुसार ऐसी ही कई इकाईयां पहले अपने परिवार, फिर समाज, देश तथा विश्व में शांति स्थापित करने का माध्यम होंगी।
महर्षि जी ने सदैव ‘‘जीवन आनंद है’’ के ब्रह्यवाक्य के उद्घोष के साथ 20 वीं शताब्दी के 60 एवं 70 के दशक में निराश एवं नकारात्मक प्रवृत्तियों से ग्रस्त मानवता को आशा, उत्साह व सकारात्मकता की सुगंध से सुवासित कर दिया। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर वर्ष 1975 में ‘ज्ञान युग’ के उदय की घोषणा कर दी थी और कहा था कि भारत अपनी सनातन ज्ञान परंपरा के बल पर पुनः जगद्गुरु के रूप में विश्व के प्रत्येक देश व प्रत्येक नागरिक का जीवन आनंदमय बनाने हेतु मार्गदर्शन करेगा।
परम पूज्य महर्षि जी का जन्म 12 जनवरी 1917 को मध्यप्रदेश; वर्तमान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास स्थित ग्राम पांडुका में हुआ था। तदानुसार वर्ष 2017-18 को महर्षि संस्थान के सभी पदाधिकारियों एवं अन्य सभी सहयोगीगणों ने ‘‘महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष’’ के रूप में समारोहपूर्वक मनाया। हम सभी को स्वयं को परम पूज्य महर्षि जी के आदर्शों के प्रति पुनः समर्पित करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ।
दिनांक 12 जनवरी 2017 को विश्वगुरु भारत की राजधानी नई दिल्ली में महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष के शुभारंभ का अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज की दैवीय उपस्थिति एंव महर्षि मन्दिर विद्यालय समूह के माननीय अध्यक्ष ब्रह्मचारी गिरीश जी के अध्यक्षता में गणमान्य अतिथियों द्वारा शंखनाद किया गया। सम्पूर्ण वर्ष तक चले “महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष’’ के अंतर्गत देश के विभिन्न राज्यों में एक सौ से अधिक भव्य समारोहों का आयोजन किया गया। इन समारोहों में बड़ी संख्या में सुधिजनों ने परम् पूज्य महर्षि जी के ज्ञान एवं दर्शन का लाभ प्राप्त किया तथा महर्षि जी द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान को अपने दैनिक जीवन में सम्मिलित करने का संकल्प लिया।
First Maharishi Mahesh Yogi Birth Centenary Year Celebration in January 2017 at New Delhi |
Audience at Maharishi Birth Centenary Year Fulfilment Celebration at Bhopal |
परम् पूज्य महर्षि जी ने सदैव भारत की सनातन वैदिक ज्ञान-विज्ञान परम्परा के वाहक अनंत श्री विभूषित स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज, ज्योतिष्पीठोद्धारक, बद्रिकाश्रम हिमालय एवं इस परम्परा के सभी सिद्ध साधु-संतों को अत्यंत सम्मान प्रदान किया एवं प्रतिपल उनका ‘जय गुरुदेव’ के रूप में उद्घोष किया। तदानुसार 11 जनवरी 2018 को अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता एंव महंत श्री नृत्य गोपाल दास जी महाराज, अध्यक्ष, श्रीराम जन्मभूमि न्यास, अयोध्या, श्री राम विलास वेदांती जी महाराज पूर्व सांसद व सदस्य, श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट, अयोध्या, महामंडलेश्वर विश्वरेश्वरानंद जी महाराज, सन्यासाश्रम, मुंबई, महामंडलेश्वर स्वामी डॉ० उमाकान्तानंद सरस्वती जी महाराज, हरिद्वार, श्री रामानुजाचार्य श्री स्वामी विश्वेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज, अयोध्या, महामंडलेश्वर श्री प्रेमशंकर दास जी, श्रीरामधाम सिद्ध विद्यापीठ, विद्याकुंड, अयोध्या, श्री कन्हैया दास जी महाराज रामायणी, अध्यक्ष संत सभा सनकादिक आश्रम, अयोध्या, सद्गुरु श्री जितेन्द्रनाथ महाराज जी, श्री दत्तपीठ, सूर्जी-अंजनगांव, महाराष्ट्र, श्री सुरेशदास जी महाराज, महंत दिगंबर अखाड़ा, अयोध्या, श्री रघुनाथ दास देसिक जी जगतगुरु रामानुजाचार्य श्रीपीठ्म चेरिटेबल सेवा ट्रस्ट अयोध्या की दैवीय उपस्थिति में महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष पूर्णता समारोह के प्रथम दिवस 11 जनवरी को “आशीर्वाद दिवस” के रूप में मनाया गया।
इस अवसर पर श्री जयभान सिंह पवैया जी, माननीय मंत्री उच्चशिक्षा मध्यप्रदेश शासन, श्री सुरेन्द्र पटवा जी, माननीय राज्यमंत्री संस्कृति एवं पर्यटन मध्यप्रदेश शासन एवं श्री आलोक संजर जी माननीय सांसद लोकसभा, भोपाल ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इस इस समारोह की शोभा बढ़ाई।
Brahmachari Shri Girish Ji is presenting fruits to Swami Jitendranath Ji. |
All Pujya Saints were welcomed and honoured with Garland, Shawl, Shriphal, Sweets, Fruits and Gifts by Brahmachari Shri Girish Ji and Shri Ajay Prakash Shrivastava Ji |
All Pujya Saints were welcomed and honoured with Garland, Shawl, Shriphal, Sweets, Fruits and Gifts by Brahmachari Shri Girish Ji and Shri Ajay Prakash Shrivastava Ji. |
ब्रह्मचारी गिरीश जी द्वारा श्री गुरु परम्परा पूजन, शंकराचार्य पीठ की पादुका पूजन एवं अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज व पूज्य संतो से प्राप्त दिव्य ज्योति से ‘दीप प्रज्ज्वलन’ कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया। विद्वान पंडितों द्वारा चारों वेदों की ऋचाओं के सस्वर पाठ ने सभागार में उपस्थित सभी अतिथियों को दैवीय अनुभूति से ओत-प्रोत कर दिया।
Pujya Brahmachari Girish Ji addressing during Maharishi Birth Centenary Fulfilment Celebration at Bhopal https://www.facebook.com/BrahmachariGirishJi |
महर्षि विद्या मन्दिर विद्यालय समूह के माननीय अध्यक्ष ब्रह्मचारी गिरीश जी ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि ‘‘सम्पूर्ण भारतवर्ष में परम् पूज्य महर्षि जी के ज्ञान, दर्शन एवं कार्यों से भारतीय जनमानस को अवगत कराने हेतु महर्षि संस्थान निरंतर प्रयासरत है। इसी तारतम्य में 12 जनवरी 2017 से ‘महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष’ समारोह पूरे भारत में मनाया गयां। इसके अंतर्गत विभिन्न स्थानों में 102 भव्य समारोह आयोजित किए गए। इसका प्रारंभ भारत की राजधानी दिल्ली में अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता में हुये समारोह से किया गया। महर्षि जी ने सदैव कहा कि ‘जीवन आनन्द है’। उन्होंने सम्पूर्ण विश्व जनमानस को भारतीय वैदिक ज्ञान एवं दर्शन तथा इसके व्यवहारिक पक्ष ‘भावातीत-ध्यान’ से अवगत कराया। यदि हम सभी परम् पूज्य महर्षि जी के सिद्धांतों का पालन करें तो सदैव जीवन में आनंद की प्राप्ति होगी, कोई दुःख नहीं रहेगा, हर स्थान पर सकारात्मकता का प्रवाह होगा, नकारात्मकता का जीवन में कोई स्थान नहीं रहेगा। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को साधनायुक्त जीवन व्यतीत करना चाहिए। महर्षि जी ने जिस प्रकार भारतीय वैदिक ज्ञान एवं तकनीकों का अथक व निरंतर परिश्रम कर पूरे विश्व में प्रचार-प्रसार किया वह विलक्षण एवं अद्वितीय है तथा प्रत्यके व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है।’’
Second row on right of stage: Vaidyashri Devendra Triguna Ji and Brahmachari Shri Girish Ji |
ब्रह्मचारी गिरीश जी आगे बतलाया कि ‘‘इतनी अपार सफलता के उपरांत भी महर्षि जी ने इसका श्रेय उन्होंने अपने पूज्य गुरूदेव से प्राप्त ज्ञान एवं उनके आशीर्वाद को दिया। सभी से यह आग्रह है कि नित्य प्रतिदिन महर्षि जी द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान सिद्धि एवं यौगिक उड़ान का अभ्सास अवश्य करें, इसमें कभी भी किसी भी कारण व्यवधान न आने पावे। हम समय की कमी का सहारा लेकर इस साधना में कमी न आने दे और इसके लिए अन्य सभी कार्य स्थगित कर दें। तभी हम पहले पूरे भारत एवं उसके पश्चात पूरे विश्व की सामूहिक चेतना में सकारात्मकता स्थापित कर प्रत्येक व्यक्ति समाज एंव राष्ट्र को अजेयता प्रदान कर सकेंगे।’’
परम् पूज्य महर्षि जी के जन्म शताब्दी वर्ष पूर्णता समारोह में समस्त उपस्थितजनों को स्नेह युक्त आशीर्वाद देते हुये पूज्य महंत श्री नृत्य गोपाल दास जी महाराज, अध्यक्ष, श्रीराम जन्म भूमि न्यास, अयोध्या ने कहा कि ‘‘ सदैव विश्व कल्याण को चरितार्थ करने वाले महर्षि महेश योगी जी का स्मरण करने मात्र से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आज के युग में आध्यात्मिक भावना तथा सकारात्मकता की कमी समाज में परिलक्षित हो रही है। इसीलिये सभी ओर चिंता, व्याग्रता तथा सामाजिक मूल्यों में गिरावट दिखाई पड़ रही है। इसे जड़ से समाप्त करने हेतु आध्यात्मिक मूल्यों की पुर्नस्थापना आवश्यक है, राम राज्य की जितनी आवश्यकता आज है उतनी कभी नहीं थी। समाज के विकास एवं जीवन को आनंदित करने के उपायों के प्रति उनका चिंतन आज भी सामयिक है। हम सभी को इसका विस्तार करना है।’’
इस अवसर पर भोपाल के लोकप्रिय माननीय सांसद लोकसभा, श्री आलोक संजर ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘‘परम् पूज्य महर्षि जी की विचारधारा राष्ट्रहित, समाजहित व व्यक्ति विकास की अवधारणा को निरूपित करती है। किसी भी राष्ट्र के संवेदनशील शासन का यही उद्देश्य रहता है कि उसके समस्त नागरिकों हेतु शांति और व्यवस्था की स्थिति उच्चतम हो जिससे कि प्रत्येक व्यकित अपनी उन्नति की चरम अवस्था को प्राप्त कर सके। इससे सर्वत्र आनंद की स्थिति उत्पन्न होगी। यही महर्षि जी की कल्पना थी। हम सबको मिलकर महर्षि जी की इसी कल्पना को हम सबको मिलकर साकार करना है।’’
श्री सुरेन्द्र पटवा जी माननीय मंत्री संस्कृति एवं पर्यटन विभाग मध्यप्रदेश शासन ने सभी साधु संतों का आशीर्वाद लेते हुए व्यक्त किया कि ‘‘सकारात्मक वातावरण में आनंद की प्राप्ति होती है। महर्षि जी के चिंतन को चरितार्थ करने के लिये आवश्यक है कि हमारी सोच सकारात्मक हो। हम सबका प्रयास यही हो कि हमारी सांस्कृतिक परंपरा, हमारे रीति-रिवाज सबका पालन हम सदैव करें, इनका पालन करना हमारा धर्म हो और यह हम सबको मिलकर करना है। मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जो संस्कृति के विकास के लिए कार्य कर रहा है। इसके अन्र्तगत प्रतिवर्ष 1200 से अधिक आनंदोत्सव आयोजित किये जाते हैं।’’ उन्होंने इसी संदर्भ में मध्यप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान जी द्वारा शासन में आनंद विभाग के गठन को सराहनीय बताया।
श्री जयभान सिंह पवैया जी, माननीय मंत्री, उच्च शिक्षा, मध्यप्रदेश शासन ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि ‘‘पूज्य साधु-संत चलते फिरते तीर्थ होते हैं। उनके दर्शन मात्र से ही मोक्ष प्राप्ति के द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं। हम उस संस्कृति के धारक हैं जिसमें प्रत्येक जीव को देवतुल्य माना गया है, क्योंकि सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव में ईश्वर का वास होता है। इस अद्भुत आयोजन के लिये मैं ब्रह्मचारी गिरीश जी को अनेकानेक साधुवाद देता हूं।’’
श्री राम विलास वेदांती जी महाराज, पूर्व सांसद एवं सदस्य रामजन्म भूमि ट्रस्ट, अयोध्या ने अपने आशीर्वचन में कहा कि‘‘संपूर्ण विश्व में एक ही महर्षि हैं कई युगों का कार्य अपने जीवनकाल में ही कर दिया और वो हैं महर्षि महेश योगी जी। महर्षि जी के वैदिक शिक्षा संस्थानों ने देश को सर्वाधिक संस्कृत के विद्वान दिये हैं और सनातन संस्कृति को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान युग में संस्कृत की भाषा की बढ़ती हुई महत्ता को देखते हुये सभी सरकारों को संस्कृत भाषा की पढ़ाई विद्यालय तथा महाविद्यालय स्तर पर अनिवार्य करना चाहिये।’’
महामंडलेश्वर विश्वरेश्वरानंद जी महाराज ने अपने उद्गार वयक्त करते हुये कहा कि ‘‘संत बिरादरी में मध्यप्रदेश का स्थान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्य महर्षि महेश योगी जी का जन्म स्थान छत्तीसगढ़, जो पूर्व में मध्यप्रदेश का भाग था, के रायपुर के पास पाण्डुका ग्राम में है। पूज्य महर्षि जी के अनन्य शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी की इस आयोजन के लिए जितनी प्रशंसा की जावे वह कम है। जन जागरण एवं चेतना के विकास के लिये महर्षि जी के चिंतन का प्रचार-प्रसार करने हेतु इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में भी होते रहने चाहिए।’’
महामंडलेश्वर स्वामी डॉ० उमाकान्तानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ‘‘महर्षि जी का दर्षन ‘‘जीवन आनंद है’’ पूर्ण सत्य है क्योंकि आनंद का द्वार कभी भी बंद नहीं होता। महर्षि जी का जीवन दर्शन कष्टों को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।’’
श्री सुरेशदास जी महाराज ने कहा कि ‘‘राष्ट्र निर्माण में शिक्षा का अहम् योगदान होता है और महर्षि जी द्वारा चेतना आधारित शिक्षा प्रणाली ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।’’
सद्गुरु श्री जितेन्द्रनाथ महाराज जी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि ‘‘वेद और विज्ञान का जो संबंध भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमदभगवद्गीता में प्रतिपादित किया है, उसे वर्तमान में जन-जन तक पहुचाने का कार्य महर्षि महेश योगी जी ने किया है। महर्षि जी का चिंतन समस्त विषयों को शिक्षा के अंतर्गत लाता है और यही तथ्य संमग्र विकास में सहायक सिद्ध होता है।’’
Jyotishpeethadheeshwar Jagatguru Shankaracharya Swami Vasudevanand Saraswati Ji Maharaj |
अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज ने रामधुन का गायन सभी उपस्थित जनों से कराकर पूरे वातावरण को भकितमय बना दिया। तत्पश्चात उन्होंने अपने आशीर्वचन में कहा कि ‘‘महर्षि महेश योगी जी का चिंतन देश में राम राज्य स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा। महर्षि जी के विचारों को जीवन में धारण करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धा होगी। महर्षि जी ने ज्ञान के मूल आधार वैदिक ज्ञान एवं वैदिक तकनीकों का पूरे विश्व में प्रचार-प्रसार कर अत्यंत ही श्रेष्ठ कार्य किया। उन्होंने कठिन साधना के स्थान पर भावातीत ध्यान की सरल, सहज एंव व्यवहारिक प्रणाली पूरे मानव जगत को प्रदान की। अब हम सबका यह कर्तवय है कि हम साधना की इस स्वभाविक पद्धति को अपनाकर अपना जीवन आनंदित एवं पूर्ण बनाये।’’
दिनांक 12 जनवरी 2018 ज्ञान युग दिवस
परम् पूज्य महर्षि महेश योगी जी का जन्म दिवस दिनांक 12 जनवरी 2018 को “ज्ञानयुग दिवस” के रूप में मनाया गया। ब्रह्मचारी गिरीश जी द्वारा श्री गुरु परम्परा पूजन, शंकराचार्य पीठ की पादुका पूजन एवं अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज से प्राप्त दिव्य ज्योति से ‘दीप प्रज्ज्वलन’ कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया। कार्यक्रम आज के समारोह का मुख्य विषय ‘‘समग्र शिक्षा-आज की आवश्यकता’’ रहा जिसमें अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता एवं महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के माननीय कुलाधिपति ब्रह्मचारी गिरीश जी की पावन उपस्थिति में देश के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से पधारे शिक्षाविदों प्रो. जी. डी. शर्मा, कुलपति, बिलासपुर विश्वविद्यालय, बिलासपुर, डॉ. प्रमोद वर्मा, कुलपति, बरकतुल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल, डॉ. रविन्द्र आर. कान्हेरे, कुलपति, भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल, आचार्य रामदेव भारद्वाज, कुलपति, अटल बिहारी बाजपाई हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल, प्रो. भुवनेश शर्मा, कुलपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय, जबलपुर, प्रो. पंकज चांदे, महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनेजमेंट एण्ड टेक्नोलॉजी, बिलासपुर छत्तीसगढ़, महामहोपाध्याय आचार्य इच्छाराम द्विवेदी, आचार्य श्री लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, दिल्ली, प्रो. (डॉ.) राम विनय सिंह, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, देहरादून, संस्कृत आचार्य श्री भगवत शरण शुक्ला, श्री बी. एस. मेहता ब्रिग. (से. नि.) महानिदेशक महर्षि अजेयता संचालनालय, श्री सुनील चंद्रा मेजर जनरल (से. नि.), महानिदेशक आर्मी स्कूलस् एवं श्री शशांक द्विवेदी, डिप्टी डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी, ने “समग्र शिक्षा- वर्तमान आवश्यकता” पर अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त किये।
Audience at Maharishi Mahesh Yogi Ji's Birth Centenary Year Fulfilment Celebration at Bhopal |
विचार-विमर्श का प्रारंभ करते हुये ब्रह्मचारी गिरीश जी ने अपने उद्बोधन में व्यक्त किया कि ‘‘वर्तमान शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों को अक्षर ज्ञान देने के साथ-साथ विषय विशेषज्ञ बनाने का प्रयास करती है। इस पूरी प्रणाली का विश्लेषण करने से दो महत्वपूर्ण कमिया परिलक्षित होती हैं। आरंभिक शिक्षा में विद्यार्थी कई विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। और जैसे-जैसे वे ऊपर की कक्षाओं में जाते हैं विषयों की संख्या कम होती जाती है, जबकि होना इसके विरूद्ध चाहिए। दूसरे वर्तमान शिक्षा में ज्ञान प्राप्त करने की पद्धति तथा जिसके बारे में ज्ञान प्राप्त किया अर्थात ज्ञेय के बारे में बहुत अधिक बल दिया जाता है, ज्ञाता अर्थात जिसे ज्ञान प्राप्त करना है उसकी क्षमता, उसकी रूचि, आदि के बारे में कम या बिल्कुल भी नहीं ध्यान दिया जाता है। इन दोनों ही कारणों से विद्यार्थियों में जो कमी या कुंठा उत्पन्न हेाती है वह शिक्षक-विद्यार्थी संबंधों तथा विद्यार्थियों के अवांछनीय सामाजिक आचरण में दृष्टिगोचर होती हैं। इन सबका निदान हम परम पूज्य महर्षि जी द्वारा प्रणीत चेतना आधारित शिक्षा को अपनाकर कर सकते हैं जिसमें भावातीत ध्यान, सिद्धि, एवं यौगिक उड़ान के नियमित अभ्यास से मन एवं बुद्धि दोनों को ही नियंत्रित कर कई लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं जिनमें एकाग्रता, सहयोगियों से मधुर संबंधों एवं वरिष्ठजनों के प्रति आदर भाव में वृद्धि सम्मिलित है। ऐसा होने पर ही शिक्षक-विद्यार्थी संबंधों में परस्पर आदर भाव में वृद्धि होगी, शिक्षकों द्वारा जो पढ़ाया जावेगा वह उच्च श्रेणी का होगा तथा विद्यार्थियों द्वारा जो पढ़ा जावेगा वह उनके द्वारा आत्मसात कर जीवन में पालन किया जावेगा ऐसी ही समग्र शिक्षा प्रणाली की आज देश को आवश्यकता है जो आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ सभी में चारित्रिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करे।’’
इस अवसर पर प्रो. जी. डी. शर्मा, कुलपति, बिलासपुर विश्वविद्यालय, ने अपने उद्बोधन में कहा कि ’’उच्च शिक्षा की समर्ग प्रगति में शासन के नियम भारी अवरोध कर रहें हैं। कई विषयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित न हो पाने के कारण विद्यार्थियों में रोष उत्पन्न होता रहता है। समग्र शिक्षा के विकास हेतु उच्च शिक्षा के क्षेत्र को महर्षि चेतना आधारित शिक्षा के सिद्धांतों से आवश्यक रूप से जोड़ना चाहिए। हम शीघ्र ही बिलासपुर विश्वविद्यालय में भावातीत ध्यान का अभ्यास प्रारंभ करने जा रहे हैं।’’
डॉ. प्रमोद वर्मा, कुलपति, बरकतुल्ला विश्वविद्यालय, - ‘‘प्राचीन शिक्षा पद्धति भारतीय शिक्षा पद्धति मात्र व्यवसाय प्राप्ति का साधन नहीं थी, वह समग्र ज्ञान पर आधारित थी जिसका वर्तमान प्रणाली में अभाव है। आज आवश्यकता इस बात की है कि समग्र शिक्षा प्राप्त करने के मार्ग पर कई अवरोध हैं, इस मार्ग पर चलने से हमारा ध्यान भटकाने के कई उपक्रम उपस्थित हैं या उपस्थित किये जा रहे हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम विद्यार्थियों को इन भटकाने वाले उपक्रमों से बचाएं या उन्हें इन उपक्रमों से बचकर अन्य वैकल्पिक मार्ग से जाने का उपाय बतलायें।’’
डॉ. रविन्द्र आर. कान्हेरे, कुलपति, भोज मुक्त विश्वविद्यालय ने कहा कि ‘‘वर्तमान समाज में व्याप्त अराजकता वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की देन है जिसमें नैतिकता का पूर्ण अभाव है। महर्षि जी की समग्र शिक्षा की परिकल्पना नैतिकता एवं संवेदना पर आधारित है जो भावातीत ध्यान के माध्यम से हमें प्राप्त होती है।’’
आचार्य रामदेव भारद्वाज कुलपति, अटल बिहारी बाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय ‘‘यदि शिक्षित व्यक्ति के अंदर ज्ञान है किन्तु संवेदनाओं का अभाव है तो वह निरर्थक है। महर्षि जी की समग्र शिक्षा हमें हमारी संवेदनाओं से परिचित कराती है और जीवन को आनंदमय बनाती है।’’
डॉ. के. के. अग्रवाल, अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया एंड अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने वीडियो संदेश में कहा कि ‘‘हमारा शरीर प्रकृति का ही छोटा रूप है जो पांच तत्वों से मिलकर बना है जिससे प्रकृति भी बनी है। विश्व शांति एवं कल्याण के लिये प्रकृति को जानना आवश्यक है, जिसके लिये महर्षि जी का भावातीत ध्यान अहम् माध्यम है।’’
श्री शशांक द्विवेदी, डिप्टी डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी ने बताया कि ‘‘वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से अलग कर दिया है। महर्षि जी की समग्र शिक्षा की परिकल्पना वापस जड़ों की ओर लौटने का साधन है।’’
महामहोपाध्याय आचार्य इच्छाराम द्विवेदी, श्री लालबहादुर शास्त्रीसंस्कृत विद्यापीठ ने कहा कि ‘‘इतिहास का गुणगान करने मात्र से वर्तमान में सुधार नहीं किया जा सकता। उसके लिये महर्षि के चिंतन को जीवन में उतारने की आवश्यकता है जिससे विश्व कल्याण एवं शांति की स्थापना की जा सके।’’
प्रो. (डॉ.) राम विनय सिंह, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, देहरादून ने बताया कि ‘‘वर्तमान शिक्षा प्रणाली की कमियों को दूर करने के लिये सतत अभियान की आवश्यकता है और महर्षि जी की समग्र शिक्षा इसमें अति महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।’’
आचार्य श्री भगवत शरण शुक्ला ने बतलाया कि ‘‘वर्तमान षिक्षा प्रणाली मात्र उत्तीर्ण होने तथा डिग्री प्राप्त करने हेतु है। इसमें संपूर्ण ज्ञान का परम अभाव है। यह महर्षि जी की चेतना आधारित शिक्षा प्रणाली अपनाकर दूर किया जा सकता है।’’
श्री बी.एस.मेहता, ब्रिगे. (से.नि.) ने कहा कि ‘‘महर्षि जी द्वारा प्रतिपादित ‘‘भावातीत ध्यान’’ समस्त मानसिक विकारों को नष्ट करता है एवं नई चेतना का विकास करता है। साफ-सुथरा मन ही राष्ट्र एवं समाज को अजेय बनाने में अपनी भूमिका निभा सकता है।’’
मेजर जनरल सुनील चंद्रा ने बतलाया कि ‘‘ध्यान के प्रयोग से समग्र शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार हम चार मुख्य बातों को जान पाते हैं- ज्ञान के लिये सीखना, करने के लिये सीखना, वैसा बनने के लिये सीखना और एक साथ जीने के लिये सीखना। इन चारों का ज्ञान होने पर ही हम आदर्श मनुष्य बनने की ओर अग्रसर हो सकते है। ’’
प्रो. पंकज चांदे ने कहा कि ‘‘प्राचीन गुरूकुल परंपरा के द्वारा हमें व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त होती थी जिससे हमें समाज में किये जाने वाले उचित-अनुचित व्यवहार का ज्ञान होता था। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इसका नितांत अभाव है।’’
प्रो. भुवनेश शर्मा, कुलपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में सभी उपस्थित महानुभावों एवं गुणीजनों से अनुरोध किया कि ‘‘परंम् पूज्य महर्षि जी के द्वारा प्रतिपादित ‘समग्र शिक्षा ’ की परिकल्पना को जन-जन तक पहुंचाने का भार हम सभी पर है। पूज्य महर्षि जी द्वारा वर्णित ‘भावातीत ध्यान’ योग प्रक्रिया के माध्यम से इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। अब, समय व्यर्थ सोचने का नहीं, अपितु करने का है।’’
अनंत श्री विभूषित स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज, बद्रिकाश्रम, हिमालय ने अपने आर्शीवचन में कहा कि ‘‘प्राचीन गुरूकुल परंपरा समग्र शिक्षा पर आधारित थी जिसमें ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण एवं व्यवहारिक ज्ञान के विकास पर भी बल दिया जाता था। अंग्रेजों के द्वारा लागू की गई वर्तमान शिक्षा व्यवस्था मात्र सतही ज्ञान देती है। इसके विरूद्ध महर्षि जी द्वारा प्रतिपादित समग्र शिक्षा चेतना का विकास करती है जो कि मानव मात्र के पूर्ण कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। महर्षि महेश योगी जी की प्रथम जन्म शताब्दी पूर्ण होकर कल से दूसरी शताब्दी में प्रवेश कर रही है। मै महर्षि संस्थान के अध्यक्महेश ब्रह्मचारी गिरीश जी से अनुरोध है कि महर्षि समूह चेतना आधारित शिक्षा प्रणाली को पूरे भारत और उसके पश्चात् शेमहेश विश्व में फैलाये ताकि समस्त जनों का कल्याण हो सके। हमारा भाव सदैव ’वसुधैव कुटुम्बकम्’ रहा हैं, ऐसी शिक्षा प्रणाली के विस्तार से हम इस भावना को साकार कर सकेंगे।’’
समस्त ज्ञानवान अतिथि वक्ताओं के ओजस्वी वचनों से अभिभूत सभागार में उपस्थित समस्त जनों ने महर्षि महेश योगी जी की ‘समग्र शिक्षा’ एवं ‘भावातीत ध्यान’ की परिकल्पना को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया।
13 जनवरी 2018- सांस्कृतिक दिवस
आज सांस्कृतिक दिवस का शुभारंभ ब्रह्मचारी गिरीश जी द्वारा श्री गुरु परम्परा पूजन एवं दीप प्रज्ज्वलन’ कर किया गया। मुख्य अतिथि श्री विष्वास सारंग जी, माननीय राज्य मंत्री सहकारिता, भोपाल गैस त्रासदी राहत तथा पुर्नवास (स्वतंत्र प्रभार), मध्यप्रदेमहेश शासन के साथ-साथ समस्त अतिथियों का स्वागत किया गया। समारोह में देमहेश के ख्यातिनाम तालवाद्य कलाकार तालयोगी पंडित सुरेश तलवलकर एवं प्रसिद्ध नृत्यांगना श्रीमती राजेश्वरी साईंनाथ ने अपने-अपने समूहों के साथ अद्वितीय कला का प्रदर्महेश न किया। इसके साथ ही महर्षि संस्थान के विद्यार्थियों ने समूह नृत्य एवं गायन के प्रदर्महेश न से सभी का मन मोह लिया।
“सांस्कृतिक दिवस” के रूप में मनाये जा रहे इस दिन के कार्यक्रमों की श्रृंखला में सर्वप्रथम विश्व विख्यात तालवाद्य कलाकार तालयोगी पद्मश्री पंडित सुरेश तलवलकर ने अपनी पुत्री सुश्री सावनी तलवलकर (तबला), अपने साथी कलाकार श्री ओमकार दलवी (पखावज), श्री नागेश आडगाँवकर (गायन) तथा श्री तनमय देवचाके (हारमोनियम) के साथ सभागार में उपस्थित सभी दर्शकों को संगीत की स्वरलहरी से हृदय तक सराबोर कर दिया। उन्होंने ‘झपताल’ (दसताल) का वादन ‘राग- चारुकेशी ’ में किया एवं एक ‘बंदिमहेश ’ (बोल- ‘डीप डीप डमरू डमरू बाजे’) का गायन प्रस्तुत कर महर्षि उत्सव भवन के सभागार में उपस्थित समस्त जनसमूह को अकल्पनीय एवं आत्मीय अनुभूति प्रदान की। इसके पश्चात् महर्षि विद्या मंदिर, रतनपुर के विद्यार्थियों ने मनमोहक समूह गान की प्रस्तुति दी जिसके बोल थे ‘स्वागतम् शुभ स्वागतम्’ एवं दूसरी प्रस्तुति के रूप में एक सामूहिक नृत्य प्रदर्शित किया जिसमें श्री रामचरित मानस पर आधारित श्रीराम कथा के एक अंमहेश का अभिनय कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अपरान्ह में महर्षि सेण्टर फॉर एजुकेशनल एक्सीलेंस, भोपाल के विद्यार्थियों ने ‘सुर से सुर मिलाके, गायें मंगलगान, गायें मंगलगान’ गीत पर सामूहिक गायन की प्रस्तुति दी एवं समस्त अतिथियों के प्रति अपने मनोद्गार व्यक्त किये। इन्हीं विद्यार्थियों के द्वारा दूसरी प्रस्तुति के रूप में अत्यंत मनमोहक एवं प्रभावशाली रूप में नृत्य नाटिका ‘श्रीकृष्ण लीला’ का मंचन किया गया। फिल्मी गीत ‘कान्हा सो जा जरा...’ पर आधारित इस नृत्य नाटिका ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला को इस तरह जीवंत किया कि दर्महेश क लगातार तालियां बजाने को विवमहेश हो गये।
दिवस की अंतिम प्रस्तुति तथा समारोह की पूर्णता की बेला में विश्व प्रसिद्ध नृत्यांगना श्रीमती राजेश्वरी साईंनाथ तथा उनकी पुत्री सुश्री वैष्णवी ने अपनी नृत्य मंडली के साथ भगवान विष्णु के ‘दशावतार’ जिसमें क्रमशः ‘मत्स्य अवतार’, ‘कूर्म अवतार’, ‘वराह अवतार’, ‘नृसिंह अवतार’, ‘वामन अवतार’, ‘परशुराम अवतार’, ‘श्रीराम अवतार’, ‘श्रीकृष्ण अवतार’, ’बलराम अवतार’ एवं ‘कल्की अवतार’ कथानक सहित प्रस्तुत किये। इसके अतिरिक्त समूह के द्वारा श्री विष्णु सहस्त्रानामं’, ‘श्रीराम-रावण युद्ध’ तथा ‘श्री विष्णु विश्वरूपम्’ की अभूतपूर्व प्रस्तुति देकर सभागार में दैवीय वातावरण का निर्माण करते हुए सभी के मन में आध्यात्मिक चेतना का जागरण करवाया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय विश्वास सारंग ने अपने उद्बोधन में ब्रह्मचारी गिरीश जी के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि ‘‘महर्षि जी ने भारत ही नहीं वरन् संपूर्ण विष्व को भारतीय मूल्यों तथा वैदिक रीतियों व ज्ञान से परिचित करवाया। सनातनी संस्कारों को वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य आज महर्षि संस्थान सार्थकता से कर रहे हैं। कुछ विरोधी शक्तियां हमारी हजारों वर्ष की प्राचीन संस्कृति एवं परंपरा को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं ऐसे में मैं महर्षि संस्थान के अध्यक्ष ब्रह्मचारी गिरीश जी से इसे संरक्षित करने में अहम् भूमिका का निर्वाह करने हेतु विशेष अनुरोध करता हूं तथा इस पुनीत कार्य में मेरी जब भी आवश्यकता पड़े मैं उसे निभाने में हमेशा तत्पर रहूंगा।’’
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने ‘‘महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष पूर्णता समारोह’’ में अपना-अपना योगदान देने के लिये समस्त परम् पूज्यनीय साधुसंतों, षिक्षाविदों, गणमान्य अतिथियों एवं अन्य सभी सहयोगियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया एवं महर्षि जी के द्वारा प्रतिपादित ‘समग्र षिक्षा’, ‘भावातीत ध्यान’, ‘वैदिक विज्ञान’ एवं ‘वेद परंपराओं’ को जन-जन तक पहुंचा कर विष्व कल्याण एवं विष्व शांति की स्थापना के प्रति अपने संकल्प को दोहराया।
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने ‘‘महर्षि जन्म शताब्दी वर्ष पूर्णता समारोह’’ में अपना-अपना योगदान देने के लिये समस्त परम् पूज्यनीय साधुसंतों, षिक्षाविदों, गणमान्य अतिथियों एवं अन्य सभी सहयोगियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया एवं महर्षि जी के द्वारा प्रतिपादित ‘समग्र षिक्षा’, ‘भावातीत ध्यान’, ‘वैदिक विज्ञान’ एवं ‘वेद परंपराओं’ को जन-जन तक पहुंचा कर विष्व कल्याण एवं विष्व शांति की स्थापना के प्रति अपने संकल्प को दोहराया।